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Home » खोरठा साहित्य » खोरठा साहित्य के कहानियों का सारांश

खोरठा साहित्य के कहानियों का सारांश

May 16, 2023 by Editorial Team

कहानी – अजवाहर भउजीक बेंड़ाइल चेंगा

लेखक – बिनोद कुमार

पात्र

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टुकना – भाभी का बेटा

यह कहानी अज्ञानता और शिक्षा के महत्व पर आधारित है | शिक्षा के बिना इंसान का विकास नहीं हो सकता है | शिक्षा ही सफलता की कुंजी और आज के समय में सबसे बड़ा हथियार है | इस कहानी के माध्यम से लेखक ने शिक्षा को बहुत ही महत्वपूर्ण बताया है | इस कहानी में एक भाभी है जिनके पति शहर में पेशकार का काम करते हैं उनकी शिक्षा मैट्रिक तक है | भाभी के कुल 10 बच्चे हैं जिसमें से 8 लड़के और 2 लड़कियां हैं |

ये सारे बच्चे दिनभर इधर से उधर करते रहते हैं लेकिन स्कूल नहीं जाते हैं | भाभी दिनभर फालतू के काम में लगी रहती है और अपने बच्चों पर बिल्कुल भी ध्यान नहीं देती है | एक दिन भाभी के देवर ने उनके छोटे बेटे टुकना को गर्मी के दिनों में आम के बगीचे में आम को तोड़ते हुए देखा | इस घटना को देखकर उन्होंने अपनी भाभी को अच्छे से समझाया | अंत में भाभी को अपनी गलती का एहसास होता है |

कहानी – उबार 

लेखक – बिनोद कुमार 

पात्र 

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झबरू – बिहारी का पिता 

बीरू – साहूकार का बेटा 

बिहारी – झबरू का पुत्र 

पूरे गांव में झबरू एक गरीब किसान है | वो और उसकी पत्नी अपने बच्चे बिहारी को पढ़ा लिखा कर एक इंसान बनाना चाहते हैं | झबरू का छोटा परिवार था जिसमें कुल 5 लोग थे | परवतिया और सुमियाँ दो बेटियां थी | बिहारी के दोस्त दिनेश, प्रेम और बिरजू कॉलेज जाते थे | एक दिन झबरू पश्चिम की तरफ अपने जानवरों को लेकर गया | उसी समय गणेश बाबू आ गए और उसे बोले कि अपने जानवरों को संभाल कर लाओ | कल तुम्हारा बैल मेरे गेहूं को खा गया |  इस बात से झबरू ने इंकार कर दिया | 

गणेश बाबू और झबरू के बीच हुई बात की जानकारी बीरु और महेश बाबू को हो जाती है | इसके बाद बीरु और महेश झबरू के जानवरों को खोलकर गणेश बाबू के तरफ भेज देते हैं | झबरू के जानवरों खेत को खा चुके थे | गणेश बाबू ने झबरू को गाली दिया और इसके साथ ही उस पर पंचायत में केस कर दिया | झबरू पर गुनाह साबित हो गया | और उसने ₹200 का जुर्माना दिया | साथ ही ₹300 से बिहारी का कॉलेज में नाम लिखवा दिया | कॉलेज के 3 वर्षो के बाद बिहारी के पिता की मृत्यु हो जाती है | उसकी मां ने बिहारी को बी.ए करवाने के लिए अपनी हसुली को बेच दिया | बाद में बिहारी पुलिस इंस्पेक्टर बन गया | यह एक सुखांत वाली कहानी है |

कहानी – ओद दीदा

लेखक – बिनोद कुमार

पात्र

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रेसमी – चानोवाली की बेटी

चानोवाली – रेसमी की मां

हेमिया – रेसमी की दोस्त

सुगिया – रेसमी की दोस्त

गांव के सारे लोग रेसमी की मां को चानोवाली के नाम से पुकारा करते थे | चूकी वह चानो गांव की निवासी थी जिस के कारण सारे लोग उसे इसी नाम से जानते थे | हेमिया और सुगिया रेसमी की दो दोस्ती थी | चानोवाली मन से साफ-सुथरी महिला थी | चानोवाली ने अपने जीवन में कभी भी कोई ऐसा काम नहीं किया था जिसके लिए उसे दोष दिया जा सके | महतो के घर से उनको कपड़े और भोजन मिल जाया करते थे | उनकी बेटी रेसमी और बेटा कोलहा था | साथ ही एक और बेटी जीरवा थी |

चानोवाली महतो परिवार की एक अंग बन चुकी थी | जब कभी भी शहर से महतो परिवार के बच्चे वापस लौटते हैं अपने से बड़े सारे लोगों के पैरों को छूते थे लेकिन उसके पैरों को कोई नहीं छूता था | एक बार इस कहानी के लेखक शहर से घर पहुंचे हुए थे | उन्होंने चानोवाली के पैरों को नहीं छुआ | लेखक को एहसास हुआ कि उनसे गलती हो गई है | और अगली बार अवसर मिलने पर वह जरूर उनके पैरों को छूएगे | चानोवाली की मृत्यु हो गई | और लेखक के उनके पैर छूने की इच्छा पूरी नहीं हो पाई | निर्मल महतो को चानोवाली माँ ने अपना दूध पिलाया था | यह एक दुखांत कहानी है |

कहानी – गुरुजीक चेठा

लेखक – चितरंजन महतो

पात्र

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रामनारायण – गुरुजी

इस कहानी में एक गुरुजी हैं जो देश और दुनिया में होने वाले तमाम प्रकार की लड़ाई झगड़े को सोच कर चिंतित हो जाते हैं | इतनी गहन चिंता में जाने के कारण उन्हें अपने भोजन करने का भी ख्याल नहीं रहता है | दुनिया में हर रोज हर समय घटना होती है जो अपने प्रवृत्ति में बुरी भी हो सकती है इसी बात की चिंता गुरुजी को नहीं छोड़ती है | वो समाज में फैले हुए जातिवाद और सामंतवाद के विरोधी हैं | गरीबों पर होने वाले अत्याचार से वह चिंतित है | दुनिया में बहुत सारे देश है जो एक दूसरे से लड़ रहे हैं इस बात से भी गुरुजी का मन दुखी है |

देश के कुछ राज्यों में आतंकवाद आज भी गंभीर समस्या है | भारत के पूर्वोत्तर में स्थित राज्य क्षेत्रवाद की भावना से ग्रसित है | गुरुजी इन समस्याओं से लड़ने के लिए कलम का सहारा लेते हैं | और इन समस्याओं से जूझने के लिए लिखने लगते हैं उनके लेखन से प्रभावित होकर कुछ उग्रवादी आत्मसमर्पण करने को तैयार हो जाते हैं | परंतु सरकार की नीतियां बाधा बन जा रही थी | इस कारण से वह मंत्री, नेता और विधायक से मिलना शुरू कर देते हैं | इस के दौरान ही वह बीमार पड़ जाते हैं | परंतु उनका प्रयास रुकता नहीं है | अपने स्तर से वह जो कर सकते हैं उसको करने के लिए प्रयासरत रहते हैं |

कहानी – घुवा – धँधा

लेखक – बिनोद कुमार

पात्र

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नारायण – चिकित्सक

किसुनवाँ – चिकित्सक का सहायक

एक गांव में एक चिकित्सक रहते हैं जिनका नाम नारायण है | नारायण बेहद भले और गरीबों के प्रति दया का भाव रखने वाले चिकित्सक हैं उनका मूल उद्देश्य गरीबों की दिलो जान से सेवा करना और सहानुभूति रखना है | नारायण के व्यवहार के विपरीत उनका कंपाउंडर बेहद दुष्ट प्रवृत्ति का इंसान है | इसी क्रम में एक दिन एक भिखारी उनके क्लीनिक में भीख मांगने के लिए आता है जिसे उनका कंपाउंडर डांट कर भगा देता है |

जब इस बात की जानकारी चिकित्सक नारायण को होती है तो वह कंपाउंडर के इस बुरे बर्ताव के प्रति नाराजगी को जाहिर करते हैं | नारायण इस बात को रात में भी सोचते रहते हैं और उन्हें नींद नहीं आती सुबह होने पर उनकी मुलाकात उसी भिखारी से होती है जिसे कंपाउंडर ने भगा दिया था |

कहानी – चोर-डकइत-लुटेरा

लेखक – चितरंजन महतो

पात्र

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हरखू – चोर

जलालुद्दीन – डकैत

इस कहानी में हरखू एक छोटा मोटा चोर है | उसने सरकारी बिजली के तारों की चोरी की थी जिसके लिए उसे 6 साल जेल की सजा मिली थी | हरखू के बाप और दादा भी फिजूलखर्ची करके अपने सारे पैसे को बर्बाद कर दिए थे | अत: हरखू भी गरीब था | जेल में जाने के बाद हरखू को वहां पर अलग-अलग तरह के लोगों से मिलना होता है जो गुंडे, डकैत और चोर थे | इनमें से जलालुद्दीन डकैत के रहन-सहन को देखकर हरखू बहुत प्रभावित होता है | जलालुद्दीन डकैत गरीबों की मदद करता था और उसका बहुत ही अच्छा मान सम्मान था |

जेल के भीतर में ही उसने 5 बैंक लूटने वालों को देखा जो बहुत ही कम उम्र के थे और बहुत ही बड़े परिवार के लड़के थे | इनका जीवन भी बहुत ही अच्छा था और इनकी जमानत भी जल्द ही हो गई थी | ये लड़के नेता और अधिकारियों के बच्चे थे | सारी व्यवस्था और चीजों को देखकर हरखू को बहुत ही पश्चाताप होता है और वह आगे से अपने जीवन में मेहनत करके जीवन यापन करने का निर्णय लेता है |

कहानी – छाँहईर

लेखक – चितरंजन महतो

इस कहानी में दो मजदूरों के बारे में बताया गया है जिनके नाम रोहण और मोहन है | दोनों की आर्थिक स्थिति अलग है | रोहण अपने मजदूरी वाले कार्य के अलावा गांव के जमींदार सूर्यनारायण चौधरी की सेवा भी किया करता था |

जमींदार सूर्यनारायण चौधरी शराब का सेवन करते थे और उनके साथ रहकर रोहण ने इस आदत को अपना लिया | इसके विपरीत में दूसरे मजदूर मोहन गांव के गुरुजी देवनारायण के संपर्क में रहते थे जिसके कारण मोहन के अंदर में अच्छे गुण आने लगे |

मोहन अपने बच्चों की शिक्षा पर भी ध्यान देता था | लेकिन रोहण अपने बच्चों की शिक्षा को लेकर सजग नहीं था | एक दिन मोहन और रोहण के बीच में बातचीत होती है इसके बाद मोहन रोहण को गुरुजी देवनारायण से मुलाकात करवाता है |

गुरुजी देवनारायण ने रोहण को उसके द्वारा अपनाए गए सारी बुरी आदतों को छोड़ने के लिए बोला | इस कहानी से मालूम चलती है कि संगति का असर इंसान के जीवन पर पड़ता है | इसलिए हमेशा संगति विचार कर के करनी चाहिए |

कहानी – जिनगीक डोंआनी

लेखक – बिनोद कुमार

पात्र

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जंगली – एक युवक

यह कहानी बेरोजगारी के कारण होने वाली दुर्दशा पर आधारित है | किसी भी व्यक्ति के जीवन में रोजगार का ना होने का समय बहुत बुरा होता है | उसे परिवार और समाज दोनों जगहों से अपमान और तिरस्कार का सामना करना पड़ता है | एक युवक का नाम जंगली है उसके पिता इस दुनिया में नहीं है उसकी मां ने उसे पढ़ाया लिखाया और इस लाइक किया कि वह बी.ए तक पढ़ सके | उसके घर में मां के अलावा दो भाई और भाभियाँ हैं | बड़े भाई की नौकरी कोयलरी में है | और मंझला भाई प्राइवेट सवारी गाड़ी का दलाल है |

जंगली की उम्र 30 वर्ष हो चुकी है | उसने अभी तक विवाह भी नहीं किया है | अपने दोस्त की शादी में जाने पर भी वहां उसे तिरस्कार का सामना करना पड़ता है | कहानी के अंत में जंगली की मां मृत्यु के कगार पर है और उसे ₹100 रुपये देकर एक पान की दुकान खोलने का सलाह देती है और मर जाती है |

कहानी – दू पइला जोंढ़रा

लेखक – बिनोद कुमार

पात्र

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विनय – एक चिकित्सक

किसना – बीमार बच्चा

कन्हैया बाबू – गांव का समृद्ध व्यक्ति

एक गांव में बांस का काम करने वाले एक व्यक्ति है | उनकी पत्नी और एक बच्चा जिसका नाम किसना है वो सारे मुश्किल से अपना जीवन निर्वाह करते हुए रहते हैं | इनका का कार्य बांस से जुड़ी हुई वस्तु जैसे सूप, दउरी इत्यादि का निर्माण करना है | एक दिन गांव के समृद्ध व्यक्ति कन्हैया बाबू किसना के पिता को सूप और दउरा को बनाने का काम देते हैं जिसे किसना के माता और पिता तल्लीनता से पूरा कर देते हैं इसके एवज में उन्हें 6 रुपया मिलता है |

यह सब कार्य के दौरान ही किसना बीमार रहता है जिसका इलाज उसकी मां अपने स्तर से करती है परंतु वो स्वस्थ नहीं हो पाता | अंत में उसकी मां किसना को एक चिकित्सक जिनका नाम विनय है उसके पास लेकर जाती है | विनय किसना का अच्छे से इलाज करते हैं और अपनी फी मात्र ₹2 रुपया लेते हैं | किसना के मां और बाप को इस बात पर बहुत आश्चर्य होता है | विनय कहते हैं कि सेवा करना उनका लक्ष्य है | यह एक यथार्थवादी कहानी है जिसमें सामाजिक विषमता को दर्शाया गया है |

कहानी – देवता के खाय गेलइ डाकिन

लेखक – चितरंजन महतो

पात्र

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निर्मलदास – शोभा का पति

शोभारानी – निर्मल दास की पत्नी

हबीब – निर्मल का चेला

यह कहानी बेमेल विवाह पर आधारित है | इस कहानी के मुख्य पात्र निर्मल दास है जो एक कार्यालय में बड़े बाबू के पद पर कार्यरत हैं | इनकी पहली पत्नी की मृत्यु हो जाने के बहुत दिनों के बाद उन्होंने अपने से बहुत कम उम्र की लड़की से उसकी सुंदरता को देखकर विवाह किया था | निर्मल दास एक बहुत ही भले आदमी है जो अपने कार्यालय के काम के अलावा सामाजिक और सांस्कृतिक कामों में भी हिस्सा लेते हैं | उनका उद्देश्य हमेशा गरीब लोगों की मदद करना है | वह दहेज प्रथा और सामंतवाद के खिलाफ की विचारधारा को रखते हैं |

शोभारानी जो उनकी पत्नी है वह बहुत ही आजाद और आधुनिक विचारों की महिला है जो दूसरे मर्दो के साथ घूमने फिरने और सिनेमा देखने का शौक रखती है | वह कभी भी अपनी पति की बातों को नहीं सुनती थी | निर्मल दास का शोभारानी के ऊपर में कोई नियंत्रण नहीं होता है और शोभारानी से हमेशा उनकी अनबन बनी रहती है | निर्मल दास का स्वभाव कुंठाग्रस्त हो जाता है | निर्मल दास के रिटायर हो जाने के बाद उनके सारे पैसे पत्नी के द्वारा खर्च कर दिए जाते हैं |

निर्मल दास के बच्चे भी बिगड़ जाते हैं | उम्र के एक पड़ाव के बाद शोभारानी के मन में अपनी गलतियों को लेकर पश्चाताप होती है और वह निर्मल दास से दूरियों को पाटने के बारे में सोचती है परंतु यह संभव नहीं हो पाता है | निर्मल दास एक बहुत ही भले आदमी थे परंतु उनकी पत्नी ने उन्हें बर्बाद कर दिया | आज वो अपने जीवन से विरक्त हो चुके हैं जिसके लिए शोभारानी जिम्मेवार है |

कहानी – नावाँछोट जिमीदार

लेखक – चितरंजन महतो

पात्र

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जगरनाथ चौधरी – गांव का बूढ़ा व्यक्ति

बलराम सिंह – थाना का दारोगा

इस कहानी के कथावाचक जगरनाथ चौधरी हैं जो गांव के अखड़ा में बैठकर बीते हुए समय की कहानी को सुना रहे हैं | पुराने समय में राजतंत्र हुआ करता था जब राजा, मंत्री और जमींदार होते थे | आज के समय में भी व्यवस्था में बहुत ज्यादा परिवर्तन नहीं हुई है | उस समय के राजाओं के समान आज के मंत्री लोग हैं और जमींदारों की तुलना आज के समय के डी.सी और कलेक्टर से की गई है | उस समय एक बहुत ही दुष्ट प्रवृत्ति का दारोगा था जिसका नाम था बलराम सिंह वह गांव के गरीब लोगों पर अत्याचार करता था और लोगों को सताकर उनसे पैसे वसूलता था |

उसे गांव के गरीब व्यक्तियों पर भी दया नहीं आती थी | गांव में कोई व्यक्ति खुद के लिए भी शराब बनाता था तो बलराम सिंह उसके घर पहुंच कर उससे पैसे ले लेता | पूरे गांव के लोग उसके अत्याचार से त्रस्त थे | हर दुष्ट व्यक्ति के अंत के समान बलराम सिंह का भी अंत बहुत ही दुखद हुआ उसने अपने नाजायज पैसे से बड़ा सा घर बनाया और कार को खरीदी लेकिन जीवन के अंतिम दिनों में उसके बेटे और बहू की दुर्घटना में मृत्यु हो गई और उसे खुद बीमारियों ने घेर लिया जिसके फलस्वरुप उनकी मृत्यु हो गई |

कहानी – बूबा, एगो कहनी कही दे

लेखक – चितरंजन महतो

पात्र

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दीना नाथ भंडारी – जमींदार

सहजदेव चौधरी – जमींदार

फागू मांझी – जमींदार

गंगाराम – गांव का बूढ़ा

इस कहानी में एक बूढ़े व्यक्ति जिनका नाम गंगाराम है कि द्वारा गांव के बच्चों को खलिहान में रात के समय में कहानी सुनाई जा रही है | इस कहानी में गंगाराम बच्चों को अंग्रेजों के समय की कहानी बता रहे हैं जब भारत अंग्रेजों का गुलाम था और बहुत सारे राजा और रजवाड़ों का शासन हुआ करता था | जिस समय भारत में अंग्रेजों का शासन था उस समय बहुत सारे राजा अंग्रेजों को कर दिया करते थे | ये कर राजा को जमीदारों के द्वारा प्राप्त होते थे जो गांव के लोगों से वसूली जाती थी | जमीदारों का रवैया गांव के आम व्यक्ति के प्रति बहुत बेहतर नहीं था | जमींदारों के पास बहुत ही ज्यादा जमीन और जायदाद थी इस के कारण उनका रहन-सहन भी बहुत शानो शौकत वाला होता था |

कुछ प्रमुख जमींदार सहजदेव चौधरी, दीनानाथ भंडारी, फागू मांझी और तिरथ मुंडा थे | इनकी विलासिता पूर्ण जीवन जीने के कारण इनकी हालत खराब होते चली गई और ये कंगाल हो गए और रही सही कसर जमीदारी उन्मूलन ने पूरी कर दी | जमींदारों के अलावा जो सामान्य व्यक्ति थे वो भी अपने खर्च को बढ़ाते चले गए जबकि आमदनी के स्रोत वही थे साथ में वो लोग नशा भी करने लगे | इस के परिणाम स्वरूप परिवार डूबता चला गया | नशा एक बहुत ही बुरी चीज है जिस से पहले परिवार और उसके बाद में समाज का विनाश हो जाता है | अतः लोगों को जितना हो सके नशे से दूर रहना चाहिए | कभी भी खर्च उतना ना करें जितनी कि आपकी आमदनी ना हो |

कहानी – बोनेक लोर

लेखक – चितरंजन महतो

इसमें जंगल के द्वारा अपनी बात को बोली जा रही है | मनुष्य की सुविधा के लिए वन के द्वारा लकड़ी दी जाती है | बहुत सारे लोग लकड़ी की बिक्री से आमदनी करते हैं | समृद्ध परिवार के लोग जंगल की लकड़ी को कटवा कर बेच देते हैं | जंगल अपनी दुःख की बात को बोल रहा है | जंगल के आदमी लोगों का कहना है कि वो लोग भी दुःखी हैं | जंगल के दुःख को कोई नहीं देखता उसी तरह हम लोगों के दुःख को भी कोई नहीं देखता है | जंगल की रक्षा में लगे सिपाही वहां के लोगों को तंग करते हैं | इन्हें बहुत प्रकार की दिक्कतें होती है |

ये सारी बातें लोगों ने जंगल राजा को बोला | जंगल ने बोला मैं सब कुछ देखता हूं | मानव इस सृष्टि का सबसे अच्छा प्राणी है | उसने सभी जीवो को अपने नियंत्रण में रखा है | जंगल को बचाने को लेकर बहुत योजनाएं बनती है | परंतु कुछ रुपयों के खर्च को दिखाकर बाकी सारे का गबन हो जाता है | जंगल को काटकर उजाड़ कर दिया गया और जानवर खत्म हो गए | हाथी का घर भी उजाड़ दिया गया | मनुष्य को जंगल की जरूरत पड़ेगी | इस कहानी के द्वारा पर्यावरण के संकट के बारे में बताई गई है |

कहानी – भीतर बाहर

लेखक – बिनोद कुमार

पात्र

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इबादत खां – सेराज का पिता

सेराज – इबादत खां का पुत्र

रोहित – फुटबॉल का खिलाड़ी

यह कहानी सामाजिक सदभावना पर आधारित है | इस कहानी के नायक का नाम सेराज है जिसके पिता का नाम इबादत खां है | इबादत खां का एक बहुत ही भले इंसान है और उसी तरह का उनका पुत्र सेराज है | गांव में एक बार फुटबॉल मैच का आयोजन किया गया था जिसमें खेल के दौरान एक खिलाड़ी रोहित चोटिल हो जाता है | उसी समय शहर में दंगे होने की सूचना मिलती है इसके बावजूद भी सेराज चोटिल रोहित को रिक्शे पर और आगे अपने कंधे पर बिठा कर उसे अस्पताल में ले जाकर चिकित्सक से दिखाकर उसे वापस गांव लेकर आता है | इस नेक काम की पूरे गांव में चर्चा होती है | दुर्योग से सेराज की मृत्यु गांव के कुएं में डूबने से हो जाती है |

कहानी – मलकी बहु

लेखक – बिनोद कुमार

पात्र

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मलकी के पिता – दयाला बाबू

मलकी का पति – बिसुन

बिसुन की पत्नी – मलकी

यह कहानी दहेज की बुराई पर आधारित है | दयाला बाबू की एक बेटी है जिसका नाम मलकी है इसकी शादी बिसुन नाम के व्यक्ति से तय कर दी जाती है | बिसुन ने बी.ए तक की पढ़ाई की थी | विवाह तय करने के दौरान लड़की वालों ने ₹40 हजार रूपये और मोटरसाइकिल देने का वादा किया था | लेकिन किसी कारणवश लड़की के पिता मोटरसाइकिल नहीं दे पाते हैं | इसी वजह से मलकी के ऊपर ससुराल में अत्याचार किया जाता है और उसका गर्भपात हो जाता है | इसी बीच उसके पति बिसुन ने दूसरी शादी भी कर ली और मलकी को पूर्ण रूप से त्याग दिया |

कहानी – माय के लोर

लेखक – बिनोद कुमार

पात्र

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सूरजा – गरीब मजदूर

गिरजा बाबू – गांव का जमीदार

नरेना – सूरजा का बेटा

मंगरा – शहर में काम करने वाला मजदूर

एक गांव में सूरजा नामक एक मजदूर रहता था उसके परिवार में कुल 4 लोग थे उसकी मां, पत्नी और एक बच्चा | बच्चे का नाम नरेना था | सूरजा के पिता उसी गांव के जमींदार गिरजा बाबू के घर पर काम करते थे | सूरजा गिरजा बाबू के घर पर ही काम करते थे एक बार सूरजा के बच्चे नरेना की तबीयत खराब हो जाती है जिसके इलाज के लिए वह जमींदार से ₹5 रुपया की मांग करता है जिसे देने से वो इंकार कर देते हैं |

सूरजा का मन शहर में जाकर काम करने का है वह गांव में नहीं रहना चाहता इसके लिए वह अपनी मां को मनाता है मां उसे हर तरह से समझाने की कोशिश करती है परंतु सूरजा नहीं मानता और अंत में वह शहर निकल पड़ता है | यह एक यथार्थवादी कहानी है जिसमें गांव से शहर प्रस्थान करने वाले व्यक्ति की स्थिति दिखाई गई है |

कहानी – संस्कीरतिक झगड़ा

लेखक – चितरंजन महतो

इस कहानी में दो अलग संस्कृतियाँ जो कि प्राचीन और नवीन है के बीच बहस को बताई गई है | दोनों संस्कृतियाँ अपने आप को श्रेष्ठ साबित करने में लगी हुई है | जबकि सच्चाई यह है कि दोनों अपने स्थान पर बेहतर है | पुरातन संस्कृति का विकास वन या जंगल में हुआ है दूसरी और नवीन संस्कृति का अभ्युदय नदियों के बगल में स्थित मैदानी जगह पर से हुआ है | नवीन संस्कृति को आधुनिक संस्कृति भी बोल सकते हैं | नवीन संस्कृति प्राचीन संस्कृति को विकास से अछूता मानती है | आज के समय की विज्ञान नवीन संस्कृति की उपज है |

आधुनिक संस्कृति के द्वारा अशांति फैली है और लोगों का सुख चैन छीन गया है | अभी के समय में लोगों के बीच में दया, प्रेम, त्याग और करुणा में कमी आ गई है | पुरानी संस्कृति का आधार मानवीय मूल्य था जो इस संस्कृति में देखने को नहीं मिलता | गलाकाट प्रतियोगिता और पर्यावरण का प्रदूषण इस सभ्यता की देन है | दोनों संस्कृतियों अपना-अपना गुण और दूसरों के दोष को उजागर करते रही | दोनों को अपने आप पर घमंड था | अंत में दोनों इस नतीजे पर पहुंचती हैं कि दोनों एक दूसरे की पूरक है | दोनों ही संस्कृतियों को सह अस्तित्व से ही विकास संभव है |

कहानी – समय कटवा तास खेला

लेखक – चितरंजन महतो

पात्र

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आनंद कुमार – शिक्षक और हारमोनियम वादक

बाल कृष्ण साव – शिक्षक और तबला वादक

चिन्मय मुखर्जी – शिक्षक और झाल बजाने वाले

सीताराम – ढोलकी बजाने वाला

गांव के लोग समय को काटने के लिए तास खेलते हैं इसी गांव में 3 शिक्षक भी रहते थे जो तास को खेलते थे | इनके नाम थे बाल कृष्ण साव, चिन्मय मुखर्जी, आनंद कुमार | इनमें से सबसे ज्यादा उम्र चिन्मय मुखर्जी की थी और आनंद तथा बाल कृष्ण हमउम्र के थे | ये तीनों तास को खेलते थे एक शिक्षक होकर भी यह बात गांव के लोगों को बुरी लगती थी | तास के खेल को एक बुरे रूप में देखा जाता है | अच्छे तास को जुआ के रूप में भी देखा जाता है | इसी बीच चिन्मय मुखर्जी की आंखों की रेटिना की पानी सूख जाती है |

उन्हें इलाज के लिए मद्रास ले जाया जाता है जहां पर चिकित्सक उन्हें चश्मा देते हैं और उन्हें आश्वस्त करते हैं कि अब आगे उनकी आंखें और खराब नहीं होगी | इस प्रकार ये तीनों तास खेलना बंद कर देते हैं | एक दिन ये तीनों मिलते हैं और एक सांस्कृतिक दल बनाने की योजना बनाते हैं इसके अंतर्गत आनंद हारमोनियम, बाल कृष्ण साव तबला और चिन्मय मुखर्जी झाल बनाने का निर्णय लेते हैं | दल को पूरा करने के लिए सीताराम को भी शामिल कर लिया जाता है जो ढ़ोलकी बजाते हैं |
इस तरह सांस्कृतिक दल का निर्माण कर के अब तास की जगह की जगह पर संगीत का आयोजन होने लगता है और गांव वालों की निंदा और इनके अपने पत्नियों के चिढ़ से मुक्ति मिल जाती है |

कहानी – हाम जीयब कइसे

लेखक – चितरंजन महतो

महेसर और पार्वती अपने रिश्तेदारों से मिलने के लिए बाहर निकले होते हैं | ये शाम के समय मुरपा गांव में पहुंच जाते हैं | वहां जाकर रघुनाथ का दरवाजा खटखटाते हैं | रघु की बहू बाहर निकलती है | और उन्हें घर आंगन में घुसाती है | कुछ समय के बाद महेसर की मुलाकात रघुनाथ से होती है | दोनों के बीच में बातचीत होने पर रघुनाथ ने बताया कि यहां और आसपास के लोग पुलिस से डरते हैं | यह एम.सी.सी का एरिया है | कुछ समय तक बातचीत करने के बाद दोनों उठ जाते हैं |

दोनों कोई बेदिया टोला चले जाते हैं | वहां पर चुनिया नामक महिला के घर में जाते हैं | महेसर और चुनिया के बीच में बातचीत होने लगती है | चुनिया ने बताया कि उसका पति पुलिस और एम.सी.सी के मुठभेड़ में मारा गया | वह किसी तरह अपने जीवन को जी रही है | चुनिया के पति का नाम डमरु था | चुनिया के कुल 3 बच्चे हैं 2 बेटियां और 1 बेटा |

कहानी – हुब

लेखक – बिनोद कुमार

पात्र

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दामोदर – गरीब लड़का

गुनेसर बाबू – जमींदार

गुनेसर बाबू ने दामोदर को आवाज लगाया | दामोदर ने पूछा क्या काम था | उन्होंने उसे हर जोतने के लिए बोला | परंतु दामोदर नहीं गया | दामोदर कॉलेज जाने की तैयारी कर रहा था | उसे देखकर उन्होंने बोला कि तुम हर जोतना छोड़कर कॉलेज जा रहे हो | गुनेसर बाबू ने दामोदर को बहुत बातें बोली | दामोदर घर से बाहर निकला और कसम खाया कि वह गांव नहीं आएगा | दामोदर के कुल 7 भाई थे | उसके पिता का नाम गुरदयाल था | दामोदर गुनेसर बाबू के पास ₹10 रोजाना पर बहाल हो गया था | इसी पैसे से वह खुद और मां की पेट चलाता था |

वह मैट्रिक पास कर चुका था | पढ़ाई को जारी रखते हुए उसने बी.ए ऑनर्स को प्रथम श्रेणी से पास कर लिया | साथ ही दारोगा की परीक्षा में भी उसे सफलता मिल गई | दामोदर अपने परिवार के साथ धनबाद में रहने लगता है | उसकी पोस्टिंग इसी स्थान पर थी | गुनेसर बाबू अपने परिवार के साथ तीर्थ करने के लिए गंगासागर गए हुए थे | उनकी मां बीमार हो गई | जिन्हें धनबाद के अस्पताल में भर्ती करवा दिए | तभी दामोदर गुनेसर बाबू के पास पहुंच गया | उन्होंने अपनी समस्या सामने रखी जिस पर दामोदर ने रुपया का इंतजाम कर दिया | अंत में गुनेसर बाबू महसूस करते हैं कि जात से कोई बड़ा और छोटा नहीं होता | कर्म सबसे प्रधान है |

Filed Under: खोरठा साहित्य

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