नाटक – अजगर
लेखक – विश्वनाथ दसौंधी
प्रकाशक – बालीडीह खोरठा कमिटी
नाटक का प्रकार – बहुअंकीय
प्रथम संस्करण – 2004
लेखक का जन्म – 1943
लेखक की मृत्यु – 2009
पात्र
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अघनू लाला – गांव का महाजन
फूलवा – एक लड़की
मंगरा – अघनू लाला का बेटा
बिजली – बितना की पत्नी
सारदा प्रसाद – अघनू लाला का मुंशी
बितना – जोकर
जालिम सिंह – चरक पहरी थाना का थानेदार
सुगिया – गोबरा की पत्नी
बाबा भगत – गांव का पुजारी
तेतरा मांझी – गरीब आदिवासी
गोबरा – गांव का गरीब किसान
मथुरा – गांव का गरीब किसान
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स्थान – गांव का चौराहा
समय – सुबह
बितना जोकर के जैसे कपड़े पहनकर लोगों के बीच में आया | और उसने लोगों से बोला कि आप लोग मेरी बात को सुनिये | इसके बाद बितना और बिजली के बीच में वार्तालाप होने लगती है | और अंत में उसने अज़गर नाटक के सुनने के बारे में कहा |
पहला अंक
पहला दृश्य
गांव का एक गरीब किसान गोबरा अघनू लाला के पास आता है | दोनों के बीच में बातचीत होती है | कुछ देर के बाद लाला ने पूछा कि मेरा कुछ पैसा तुम्हारे पास बकाया है | गोबरा ने कहा कि आपका सिर्फ ₹50 बाकी है | अघनू ने अपने मुंशी सारदा प्रसाद को बुलाया उसने देख कर बोला कि इसका ₹500 बाकी है | जब गोबरा ने देने में असमर्थता जाहिर की तब सारदा प्रसाद ने उसे एक सादा कागज दिया और उस पर अंगूठा लगाने को बोला | गोबरा ने वहां पर अंगूठा को लगा दिया | अघनू ने गोबरा के सारे जमीन और जायदाद को उस कागज पर लिख देने का आदेश मुंशी को दिया |
दूसरा दृश्य
इस दृश्य में मथुरा और बाबा के बीच में बात हो रही है | मथुरा ने बोला टूंगरी बाबा की पूजा होकर रहेगी मैं इंतजाम करता हूं | और इसके बाद मथुरा वहां से चला गया |
तीसरा दृश्य
स्थान – गोबरा की झोपड़ी
गोबरा अपने घर में प्रवेश करता है | और सुगिया से खाने के लिए मांगता है जिस पर सुगिया कहती है कि खाने के लिए कुछ नहीं है | सुगिया गोबरा की पत्नी है | इस प्रकार दोनों के बीच में बातचीत होती है और फिर रात हो जाती है |
चौथा दृश्य
स्थान – चरक पहरी थाना
इस दृश्य में थानेदार जालिम सिंह और सेवक राम के बीच में वार्ता हो रही है | इसी बीच में सारदा प्रसाद प्रवेश करते हैं | उसने कहा कि अघनू लाला ने गोबरा को पैसे दिए थे और वो आज इस बात से इंकार कर रहा है | इसलिए अब आप इस पर गौर करिए | इतना कहकर सारदा प्रसाद वहां से चले जाते हैं |
पांचवा दृश्य
इस दृश्य में मंगरा और फुलवा है | जो आपस में बात करते हैं कि विभिन्न जात होने के कारण यह समाज उन्हें साथ नहीं रहने देगा | जिस पर मंगरा का कहना था कि वह इन सब चीजों में विश्वास नहीं रखता और वह सदा उसके साथ रहेगा |
छठा दृश्य
स्थान – अघनू लाला का बैठक खाना
अघनू लाला बैठे हुए हैं उसी समय मंगरा प्रवेश करता है | दोनों के बीच में बहस होने लगती है | इस बहस का आधार जात होता है अंत में अघनू लाला मंगरा को वहां से चले जाने के लिए बोलते हैं |
दूसरा अंक
पहला दृश्य
यहां पर गोबरा और सुगिया के बीच में बातचीत हो रही है | तभी सारदा प्रसाद और थानेदार जालिम सिंह वहां पर पहुंच जाते हैं | और घर को खाली करने के लिए बोलते हैं | इसी बीच में मंगरा वहां पहुंचकर हस्तक्षेप करता है | और सारदा प्रसाद और जालिम सिंह वहां से चले जाते हैं |
दूसरा दृश्य
स्थान – टूंगरी बाबा का मंदिर
इस दृश्य में बाबा और मथुरा है | मथुरा ने बोला कि लोग टूंगरी बाबा की पूजा करने में असमर्थ हैं | तभी मंगरा भी वहां पहुंच जाता है | मंगरा और बाबा के बीच में बहस होने लगती है और अंत में मथुरा मंगरा को अपने साथ चलने के लिए बोल देता है |
तीसरा दृश्य
स्थान – गांव का मुहाना
इस दृश्य में फूलवा और तेतरा के बीच में बातचीत हो रही है फूलवा ने कहा थानेदार उसके पास आकर धमकी देते रहता है | देर तक फूलवा अपनी परेशानियां के बारे में तेतरा से वार्तालाप की |
चौथा दृश्य
थाना में थानेदार जालिम सिंह है उसी समय अघनू लाला और बाबा भगत आते हैं | जालिम सिंह के द्वारा आने का उद्देश्य पूछने पर अघनू लाला ने अपने बेटा मंगरा से जुड़े हुए समस्या को बताया |
तीसरा अंक
प्रथम दृश्य
थाना में आकर सिपाही ने बोला कि पूरे गांव में आग लगा हुआ | अभी दोनों के बीच बातचीत हो रही थी कि उसी समय मंगरा वहां आ गया | उसने बोला कि बाबा भगत ने गांव में आग लगा दिया | जालिम सिंह ने उसकी बात को नहीं माना और मंगरा को हाजत में डालने का आदेश दिया |
दूसरा दृश्य
स्थान – अघनू लाला का घर
इस दृश्य में अघनू लाला और सारदा प्रसाद के बीच में बातचीत हो रही है | सारदा ने बोला कि जिस किसी का भी जमीन आप गलत ढंग से लिए हुए हैं उसे वापस कर दीजिये | दोनों के बीच में बहस होती है |
तीसरा दृश्य
स्थान – गोबरा का घर
यहां पर सारदा प्रसाद आते हैं | और सारदा प्रसाद तथा सुगिया के बीच में बातचीत हो रही है | सुगिया ने बोला कि उसके दोनों बच्चों की मृत्यु हो गई |
चौथा दृश्य
स्थान – जंगल के बीच
यहां पर फूलवा, सुगिया और सारदा प्रसाद है | इसी समय मथुरा आते हैं | और बोलते हैं कि मंगरा को फांसी की सजा सुनाई गई है |
पांचवा दृश्य
इस दृश्य में सुगिया और फूलवा के बीच में बात हो रही है | फूलवा ने सुगिया को अन्याय का विरोध करने के लिए बोला |
छठा दृश्य
गोबरा का सर फट चुका है और उसकी बात तेतरा से हो रही है | गोबरा को थानेदार ने मारा है |
नाटक – उद्भासल कर्ण
लेखक – श्रीनिवास पानुरी
दृश्य – 11
अंक – 1
रचना काल – 1963
पहला दृश्य
कुंती भगवान सूर्य को बोल रही हैं हे भगवान आपने यह बालक को मुझे दिया इसे मैं कहां रखूं | मैं अभी कुंवारी हूं | समाज के लोग मुझे पापिन कहेंगे | तभी आकाशवाणी होती है उसे सोने के पिटारे में रखकर गंगा में बहा देने के लिए बोला जाता है | कुंती दुविधा में आ जाती है और अंत में समाज के भय को सोच कर उसे पेटी में भरकर बहा देती है |
दूसरा दृश्य
द्रोण बोलते हैं कौन नहीं चाहता है कि उसका बेटा वीर और गुणवान हो | लेकिन सिर्फ सोचने से कुछ होता नहीं इसके लिए करना पड़ता है | द्रोण अर्जुन को अपना गौरव बोलते हैं | उस के बाद कर्ण वहां प्रवेश करते हैं और बोलते हैं कि मैं आपके पास धनुर्विद्या सीखने के लिए आया हूं | उसे देख कर द्रोण को लगता है यह बालक तेज मालूम हो रहा है इसे अगर धनुर्विद्या सिखा दिया जाए तो यह बहुत बड़ा वीर बनेगा | लेकिन द्रोण उसे यह विद्या सिखाने से मना कर देते हैं | इसके बाद कर्ण सोचते हुए परशुराम के पास जाने का विचार करते हैं |
तीसरा दृश्य
इस दृश्य में द्रोण और अर्जुन शिकार खेलने के लिए गए हुए हैं | वहां पर इनकी मुलाकात एकलव्य से होती है | एकलव्य ने द्रोण को अपना गुरु मान लिया था और उनकी मूर्ति बनाकर धनुष बाण से अभ्यास करता था | यहां पर द्रोण ने एकलव्य से दाएं हाथ का अंगूठा गुरु दक्षिणा के रूप में मांग लिया | और बिना संकोच किए हुए एकलव्य ने अपना अंगूठा दे दिया |
चौथा दृश्य
इस दृश्य में कौरव और पांडव के बीच में धनुर्विद्या का खेल दिखाया जा रहा है | यहां पर कृपाचार्य कर्ण से सवाल करते हैं कि तुम कौन हो जो अर्जुन के साथ धनुर्विद्या का खेल खेलोगे | इस पर दुर्योधन ने हस्तक्षेप किया और सबके सामने कर्ण को अंग देश का राजा घोषित कर दिया | कर्ण ने दुर्योधन के सामने इसके लिए कृतज्ञता प्रकट की | अंत में कृपाचार्य ने शाम हो जाने पर सबको चलने के लिए बोला |
पांचवा दृश्य
इस दृश्य में सोनी और मीरा नाम की दो लड़कियां परशुराम के आश्रम में वार्तालाप कर रही हैं | इनके बातचीत का विषय जात-पात और ऊंच-नीच होती है | उच्च जाति के लोग निम्न जाति के लोगों से भेदभाव करते हैं |
छठा दृश्य
यहां पर गुरु परशुराम कर्ण के जांघ पर अपने सिर को रख कर सो रहे हैं | इसी दौरान एक भौंरा कर्ण के जांघ के नीचे में आकर काटने लगा | और वहां से खून बहने लगी इस खून के स्पर्श से परशुराम की नींद खुल गई | परशुराम को बहुत आश्चर्य होता है कि एक ब्राह्मण के अंदर में इतना धीरज कैसे हो सकता है | वह कर्ण से उसके जात के बारे में पूछते हैं और सच जानने के बाद उसे कहते हैं कि कर्ण तुम ब्रह्मास्त्र की विद्या को भूल जाओगे | इतना कह कर उसे आश्रम को छोड़कर जाने का आदेश दे दिया |
सातवां दृश्य
इस दृश्य में पांडव अपने वनवास को पूरा करके वापस आ चुके हैं | कृष्ण अपने मन में विचार करते हैं कि अब युद्ध की स्थिति सामने आ रही है और यह युद्ध बहुत खराब है इसमें लोग असमय मारे जाएंगे | और वह एक बार दुर्योधन को समझाने के बारे में सोचते हैं |
आठवां दृश्य
यह दुर्योधन के राजसभा का दृश्य है | यहां पर कृष्ण दुर्योधन को युद्ध को टालने के लिए समझाते हैं | परंतु दुर्योधन पांडवों को कुछ भी देने से इंकार कर देता है | कृष्ण दरबार से बाहर चले जाते हैं और उनके पीछे कर्ण आते हैं | कृष्ण कर्ण को पांडवों की तरफ आ जाने का प्रस्ताव देते हैं जिसे कर्ण अस्वीकार कर देते हैं |
नौवा दृश्य
इस दृश्य में कर्ण और कुंती के बीच में वार्तालाप हो रही है | जिसमें कुंती कर्ण को अपना पुत्र बताती हैं | और उसे बोलती है कि सारे पांडव उसके अपने भाई हैं | परंतु आखिर में कर्ण ने कुंती को कहा कि वह अर्जुन को छोड़कर बाकी सारे पुत्रों को अभयदान देता है |
दसवा दृश्य
इस दृश्य में कर्ण स्नान कर के सूरज को प्रणाम करते हैं | उसी समय इंद्र ब्राह्मण का रूप धारण करके कर्ण से उसके कवच और कुंडल को मांग लेते हैं |
ग्यारहवा दृश्य
यहां पर युद्धभूमि का दृश्य है | कर्ण के रथ का चक्का धरती में फंस गई है | और इसी समय अर्जुन ने उस पर बाण चलाकर कर्ण के प्राण ले लिए |
नाटक – चाभी-काठी
नाटक का नाम – डाह
लेखक – सुकुमार
पात्र
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शेखर का बड़ा भाई – विवेक
विवेक का छोटा भाई – शेखर
वकील I – बक्शी
वकील II – गुप्ता
रेवती इंजीनियरिंग वर्कर्स के मालिक – रेवती प्रसाद
विराट की पत्नी – भावना
विवेक की पत्नी – रचना
रेवती इंजीनियरिंग वर्कर्स के मैनेजर – ध्रुव सिंह
रेवती इंजीनियरिंग वर्कर्स के कर्मचारी – विराट
रेवती इंजीनियरिंग वर्कर्स के सुपरवाइजर – जग्गा
एक गांव में दो भाई रहते थे जिनका नाम शेखर और विवेक था | विवेक की पत्नी का नाम रचना था और वह एक गृहणी थी | विवेक रेवती इंजीनियरिंग वर्कर्स नामक कंपनी में फोरमैन के पद पर कार्य करता था और उसका छोटा भाई शेखर एक किसान था जो खेतों में काम करता था | विवेक जिस कंपनी में काम करता था वहीं पर एक कर्मचारी था जिसका नाम था विराट | विराट एक दुष्ट और ईर्ष्या करने वाला व्यक्ति था जिसकी विवेक से नहीं बनती थी | वह विवेक को तबाह करने के फिराक में लगा रहता था | विराट की पत्नी का नाम भावना था जो सिर्फ अपने घर का काम करती थी |
विवेक के छोटे भाई शेखर को दुनिया की उतनी समझ नहीं थी जिसका लाभ उठाकर विराट ने उसे अपने भाई के प्रति जमीन जायदाद और हिस्से को लेकर उसे भड़का दिया और उसके दिल में अपने भाई के प्रति नफरत के बीज बो दिए | एक दिन नफरत की आग में जलता हुआ शेखर अपने बड़े भाई विवेक के पास बंदूक लेकर पहुंचा और जमीन जायदाद के कागज पर अपने आधे हिस्से की मांग की | इसी दौरान विराट भी वहीं मौजूद था और उसने अपने पिस्तौल से विवेक पर गोली चला दी और इसके फलस्वरूप विवेक की मृत्यु हो गई तथा इल्जाम शेखर के सर पर आ गई |
कोर्ट में मामले की सुनवाई के दौरान विराट की पत्नी भावना पिस्तौल को सबूत के तौर पर पेश करती है जिसके बाद शेखर को रिहा कर विराट को सजा दी जाती है | नाटक के अंत में विवेक की पत्नी रचना अपने देवर शेखर को एक कागज सौंपती है जिसमें विवेक अपने हिस्से की सारी जमीन शेखर के नाम कर दिए होता है |