निबंध – छोटानागुपरेक नैनीताल “नेतरहाट”
लेखक – बी. एन.ओहदार
इस निबंध में लेखक के द्वारा नेतरहाट की यात्रा का वर्णन किया गया है | झारखंड के नेतरहाट की तुलना नैनीताल से की गई है | नेतरहाट रांची से 155 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है जिसकी समुद्र तल से कुल ऊंचाई 625 मीटर है | लातेहार जिला में स्थित यह एक हिल स्टेशन है | यहां से सूर्योदय और सूर्यास्त का अनूठा दृश्य दिखता है | डूबते हुए सूरज का दृश्य मैग्नोलिया पॉइंट से देखा जा सकता है | इस स्थान पर पर्यटक अक्टूबर और नवंबर के महीने में काफी संख्या में देखे जाते हैं | इस यात्रा के लिए 1800/- रूपये प्रदान किए गए और यात्रा की शुरुआत 17 जून से हुई |
लोगों के गुट ने यात्रा बस से शुरू की जिसका समय 10:30 AM था | रांची से चली बस रातू होते हुए कुड़ू में रूकती है | वहां से गाड़ी लोहरदगा पहुंचती है | इसके आगे मे गाड़ी लंगरा टाड़ नामक घाटी में प्रवेश कर जाती है | घाटी की गहराई 100 फीट से भी ज्यादा थी | रास्ते में इन लोगों का सामना बंदरों से होता है साथ ही साथ जंगल के बीच में केले के पेड़ भी दिखते हैं | सारे लोग 6:30 PM पर नेतरहाट पहुंचते हैं | मैग्नोलिया पॉइंट नेतरहाट के अस्पताल से मात्र 4 किलोमीटर की दूरी पर है | देर से पहुंचने के कारण ये लोग डूबते हुए सूरज को नहीं देख पाते हैं |
अंत में रुकने के लिए रेवेन्यू सेक्शन के बंगले में जाकर रुकते हैं | रात में किसी प्रकार भोजन का इंतजाम कर के ये सारे लोग सो जाते हैं और सूर्योदय को देखने की लालसा से सुबह में 4:45 AM में ही उठ जाते हैं | उगते हुए सूरज को देखकर दल के लोग विस्मय से भर जाते हैं | यह दृश्य अद्भुत था | इन्हें यह प्राकृतिक सौंदर्य को देखकर बहुत खुशी मिली | इसके बाद सारे लोगों ने नाश्ता किया और प्रसिद्ध नेतरहाट स्कूल को देखने के लिए प्रस्थान कर दिए | इस आवासीय विद्यालय की स्थापना वर्ष 1954 में हुई थी | इसके पहले प्राचार्य का नाम नेपियर था | ये सारे लोग वहां से 10:30 AM पर निकलते हैं | और अपने जेहन में अच्छी यादों को संजोकर वापस रांची पहुंच जाते हैं |
निबंध – फूल कर परब सरहुल आर तकर प्रासंगिकता
लेखक – बी. एन. ओहदार
सभ्यता और संस्कृति के विकास में परिवेश का बहुत योगदान होता है | भारत में 2 प्रकार की सभ्यता है नदी घाटी सभ्यता और दूसरी अरण्य सभ्यता | झारखंड एक ऐसा क्षेत्र है जो जंगल और वन से घिरा हुआ है | झारखंड में चलना ही नृत्य है और बोलना ही गीत है | सरहुल झारखंड का एक प्रमुख त्योहार है | सरइ फूल के पर्व को सरहुल बोलते हैं | सरहुल पर्व को झारखंड के विभिन्न जनजातियों के बीच अलग-अलग नाम से जाना जाता है | बसंत ऋतु के आते ही पेड़ पौधों में नए-नए फूल और पत्तियां आ जाती है | चारों तरफ हरियाली छा जाती है | सरहुल पूजा के लिए मुख्य रूप से 3 दिनों की नेग होती है | पहला रूसा, दूसरा सरना पूजा और आखिर में फुलखोंसी |
(1). रूसा – इसमें धरती को कोड़ने और पानी को पटाने के लिए मना की जाती है | जो व्यक्ति इस आदेश का पालन नहीं करते हैं उनसे जुर्माना लिया जाता है |
(2). सरना पूजा – यह रूसा के अगले दिन होती है जिसमें गांव के लोग सरना वृक्ष की पूजा करते हैं |
(3). फुलखोंसी – इस दिन घर के दरवाजे पर फूल को खोस दी जाती है |
सरहुल के शुरुआत की संभावना :-
एक समय सखुआ का बीज आदिवासियों का मुख्य आहार था | जिस स्त्रोत से भोजन मिलता है उसकी पूजा की जाती है | इस प्रकार यह संभावना व्यक्त की जा रही है कि सरहुल के पर्व की शुरुआत हुई |
सरहुल आर पर्यावरण :-
प्रकृति में एक संतुलन बना हुआ है | आज इंसान के द्वारा प्रकृति में हस्तक्षेप किया जा रहा और वनों की कटाई की जा रही है | जिस के कारण एक असंतुलन की स्थिति उत्पन्न हो रही है |
आज परमाणु संकट से भी बड़ा संकट पर्यावरण का संकट है | सरहुल एक मर्यादा का भी त्यौहार है | हमलोगों के पूर्वज दूर दृष्टि वाले थे | उन्हें मालूम था कि जंगल को काटने के साथ-साथ उसे लगाना भी बहुत जरूरी है |
इस प्रकृति में सारे जीव एक समान है और सब का अपना महत्व है | कोई भी जीव ना किसी से बड़ा है और ना किसी से छोटा है | आज लोगों को पर्यावरण के प्रति जागरूक करने की जरूरत है |