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Sharmishtha Academy

खोरठा साहित्य

खोरठा साहित्य के विविध विषयों का सारांश

May 16, 2023 by Editorial Team

संस्मरण – उजरल खोंधा

लेखक का नाम – जनार्दन गोस्वामी

प्रकाशन वर्ष – 2013

प्रकाशक – बालीडीह खोरठा कमिटी

यह संस्मरण माराफारी और उसके आसपास के बसे 85 गांवों के विस्थापन और बोकारो स्टील सिटी के स्थापना से जुड़ी हुई है | विस्थापन के दर्द को लेखक ने बहुत ही नजदीक से महसूस किया और उसे अपने शब्दों में पिरो कर लिख दिया | किसी भी स्थान से जब लोगों को विस्थापित किया जाता है तब बहुत सारी परेशानियां होती है |

यह विस्थापन की प्रक्रिया Land Acquisition Act 1894 के तहत की गई और इसकी शुरुआत वर्ष 1956 में की गई | इसमें 60 गांवों को पूर्ण रूप से और 25 गांवों को आंशिक रूप से उजाड़ दिया गया | बोकारो कारखाना की स्थापना के लिए नापी वर्ष 1960-61 में शुरू की गई उस समय भारत के प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू थे |

मुआवजे की रकम

(1). एक नंबर बहियार खेत – 3000 / प्रति एकड़

(2). दो नंबर कनारी खेत – 2000 / प्रति एकड़

(3). तीन नंबर बाइद खेत – 1500 / प्रति एकड़

(4). चार नंबर टाइंड़ खेत – 400 / प्रति एकड़

जिस समय विस्थापन की प्रक्रिया शुरू हुई थी उस समय माराफारी के अधिकांश जमीन के मालिक सरयू प्रसाद सिंह थे और उस क्षेत्र के विधायक का नाम विन्देश्वरी दुबे था |

शब्दचित्र / रेखाचित्र – रइसका

लेखक – डॉ. बी. एन. ओहदार

रइसका चारिहजुरी गांव का निवासी था | इनका जन्म भादो अष्टमी को हुआ था | जन्म के समय से ही इनके ललाट पर ढ़ोल और मांदर के चिन्ह बने हुए थे | रइसका को नृत्य करना बहुत पसंद था वह जहां भी जाता वहां समां बांध देता था | उसकी कद काठी और रुप रंग भी बहुत आकर्षित करने वाली थी | वह लोगों के बीच में बहुत ही लोकप्रिय था | रइसका को हर बार झूमर खेलने के लिए एक नदी को पार करके जाना पड़ता था |

जब नदी में पानी ज्यादा हो जाती थी तो वह नदी के दोनों तरफ स्थित पेड़ों के डालों को एक रस्सी से बांध देता था और उसी रस्सी को पकड़कर वह नदी को पार करता था | एक बार गांव के ईर्ष्यालु लोग इसी रस्सी को हल्का सा काट कर छोड़ दिए थे जब रइसका इसे पकड़कर नदी के बीच में पहुंचा तो रस्सी टूट गई और रइसका नदी में बहने लगा और अंततः डूबकर उसकी मृत्यु हो गई |

खोरठा साहित्य के जीवनियों का सारांश

May 16, 2023 by Editorial Team

जीवनी – तिलका मांझी

लेखक – बी.एन.ओहदार

तिलका मांझी का जन्म वर्ष 1750 में राजमहल क्षेत्र के तिलकपुर गांव में हुआ था | वर्ष 1770 में संथाल परगना के क्षेत्र में अकाल पड़ी थी | क्लीवलैंड नामक अंग्रेज ने 47 गाँवो से 1300 सिपाहियों की फौज बनाई जिसमें इन लोगों को 2 से ₹10 तक का वेतन दिया जाता था | तिलका मांझी का दूसरा नाम जबरा पहाड़िया था | इन्होंने आंदोलन के प्रसार के लिए सखुआ के डाली का उपयोग किया था |

अंग्रेजो के खिलाफ तिलका मांझी ने गुरिल्ला युद्ध प्रणाली को चलाया था | और अपने प्रयास से क्लीवलैंड को तीर से जान मार दिया | इसके बाद आयरकूट को स्थिति को संभालने के लिए भेजा गया | इस समय आयरकूट से बचने के लिए तिलका मांझी ने सुल्तानगंज के पहाड़ियों में शरण लिया | अंत में तिलका मांझी को धोखे से पकड़कर भागलपुर लाया गया और सजा के तौर पर घोड़े के पीछे में बांधकर पूरे भागलपुर में घसीटा गया और फिर उन्हें फांसी पर लटका दिया गया |

जीवनी – बिनोद बिहारी महतो

लेखक – श्याम सुंदर महतो

झारखंड राज्य के लोग बिनोद बिहारी महतो को प्रेम से बाबू बुलाते हैं | ये बहुमुँखी प्रतिभा के धनी और समाज सुधारक थे | ये विधायक और सांसद दोनों पदों पर रहते हुए सेवा का कार्य किए और इन्हें फुटबॉल खेल से ज्यादा लगाव था | इन्होंने बड़ी मुश्किल से अपनी शिक्षा 8 वर्ष की उम्र से शुरू की और हर परीक्षा में अव्वल श्रेणी से सफल होते चले गए |

अपने शिक्षा को पूर्ण कर लेने के बाद इनके द्वारा शिवाजी समाज की स्थापना की गई | पढ़ो और लड़ो इनके द्वारा दिया गया सूत्र था | बिनोद बिहारी ने 22 हाई स्कूल और 5 कॉलेज को खोला था | झारखंड मुक्ति मोर्चा नामक पार्टी की स्थापना इनके द्वारा वर्ष 1972 में की गई | इस महान शख्स की मृत्यु राम मनोहर लोहिया अस्पताल में हुई थी | बिनोद बिहारी महतो का जन्म वर्ष 1921 में और मृत्यु वर्ष 1991 में हुई थी |

जीवनी – रामनारायण सिंह

लेखक – जयवीर साहू

रामनारायण सिंह को छोटानागपुर के शेर के नाम से भी जाना जाता है | इनका जन्म चतरा जिले के तेतरिया गांव में हुआ था | जन्म का वर्ष 1885 था | बाबू भोला सिंह इनके पिता का नाम था | इनका चेहरा रविंद्र नाथ टैगोर से मिलता था | इनका विवाह वर्ष 1907 में अझोला देवी के साथ हुआ था | अझोला देवी की मृत्यु वर्ष 1936 में हो गई | इन्होंने पुनः दूसरी जाति की महिला से वर्ष 1940 – 42 में दूसरा विवाह किया |

इस महान शख्स की मृत्यु 1964 में जीप दुर्घटना के कारण हो गई थी | वकालत की प्रैक्टिस वर्ष 1919 से शुरू हुई थी | इनके द्वारा किए गए सामाजिक और अच्छे कामों को देखते हुए लोग इन्हें छोटानागपुर के केशरी नाम से भी जानते थे | चतरा कॉलेज और हंटरगंज हाईस्कूल की बुनियाद भी इन्होंने ही रखी थी |

जीवनी – श्रीनिवास पानुरी

लेखक – प्रदीप कुमार

श्रीनिवास पानुरी का जन्म वर्ष 1920 में धनबाद में हुआ था | इनके पिता का नाम शालीग्राम था | रामखेलावन इनके बड़े भाई और सावित्री इनकी बहन का नाम था | श्रीनिवास पानुरी ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा धनबाद से की थी | वर्ष 1954 में बाल किरिन की रचना की गई थी और मातृभाषा की रचना वर्ष 1957 में की गई थी | कालिदास के मेघदूत की खोरठा में अनुवाद श्रीनिवास पानुरी ने की थी | इनको कविजी के नाम से भी संबोधित किया जाता था | पानुरी जी की जुगेक गीता कम्युनिस्ट घोषणापत्र की अनुवाद है | इन्होंने अपने संपूर्ण जीवन के दौरान 40 खोरठा और 40 हिंदी किताब की रचना की |

खोरठा साहित्य के निबंधों का सारांश

May 16, 2023 by Editorial Team

निबंध – छोटानागुपरेक नैनीताल “नेतरहाट”

लेखक – बी. एन.ओहदार

इस निबंध में लेखक के द्वारा नेतरहाट की यात्रा का वर्णन किया गया है | झारखंड के नेतरहाट की तुलना नैनीताल से की गई है | नेतरहाट रांची से 155 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है जिसकी समुद्र तल से कुल ऊंचाई 625 मीटर है | लातेहार जिला में स्थित यह एक हिल स्टेशन है | यहां से सूर्योदय और सूर्यास्त का अनूठा दृश्य दिखता है | डूबते हुए सूरज का दृश्य मैग्नोलिया पॉइंट से देखा जा सकता है | इस स्थान पर पर्यटक अक्टूबर और नवंबर के महीने में काफी संख्या में देखे जाते हैं | इस यात्रा के लिए 1800/- रूपये प्रदान किए गए और यात्रा की शुरुआत 17 जून से हुई |

लोगों के गुट ने यात्रा बस से शुरू की जिसका समय 10:30 AM था | रांची से चली बस रातू होते हुए कुड़ू में रूकती है | वहां से गाड़ी लोहरदगा पहुंचती है | इसके आगे मे गाड़ी लंगरा टाड़ नामक घाटी में प्रवेश कर जाती है | घाटी की गहराई 100 फीट से भी ज्यादा थी | रास्ते में इन लोगों का सामना बंदरों से होता है साथ ही साथ जंगल के बीच में केले के पेड़ भी दिखते हैं | सारे लोग 6:30 PM पर नेतरहाट पहुंचते हैं | मैग्नोलिया पॉइंट नेतरहाट के अस्पताल से मात्र 4 किलोमीटर की दूरी पर है | देर से पहुंचने के कारण ये लोग डूबते हुए सूरज को नहीं देख पाते हैं |

अंत में रुकने के लिए रेवेन्यू सेक्शन के बंगले में जाकर रुकते हैं | रात में किसी प्रकार भोजन का इंतजाम कर के ये सारे लोग सो जाते हैं और सूर्योदय को देखने की लालसा से सुबह में 4:45 AM में ही उठ जाते हैं | उगते हुए सूरज को देखकर दल के लोग विस्मय से भर जाते हैं | यह दृश्य अद्भुत था | इन्हें यह प्राकृतिक सौंदर्य को देखकर बहुत खुशी मिली | इसके बाद सारे लोगों ने नाश्ता किया और प्रसिद्ध नेतरहाट स्कूल को देखने के लिए प्रस्थान कर दिए | इस आवासीय विद्यालय की स्थापना वर्ष 1954 में हुई थी | इसके पहले प्राचार्य का नाम नेपियर था | ये सारे लोग वहां से 10:30 AM पर निकलते हैं | और अपने जेहन में अच्छी यादों को संजोकर वापस रांची पहुंच जाते हैं |

निबंध – फूल कर परब सरहुल आर तकर प्रासंगिकता

लेखक – बी. एन. ओहदार

सभ्यता और संस्कृति के विकास में परिवेश का बहुत योगदान होता है | भारत में 2 प्रकार की सभ्यता है नदी घाटी सभ्यता और दूसरी अरण्य सभ्यता | झारखंड एक ऐसा क्षेत्र है जो जंगल और वन से घिरा हुआ है | झारखंड में चलना ही नृत्य है और बोलना ही गीत है | सरहुल झारखंड का एक प्रमुख त्योहार है | सरइ फूल के पर्व को सरहुल बोलते हैं | सरहुल पर्व को झारखंड के विभिन्न जनजातियों के बीच अलग-अलग नाम से जाना जाता है | बसंत ऋतु के आते ही पेड़ पौधों में नए-नए फूल और पत्तियां आ जाती है | चारों तरफ हरियाली छा जाती है | सरहुल पूजा के लिए मुख्य रूप से 3 दिनों की नेग होती है | पहला रूसा, दूसरा सरना पूजा और आखिर में फुलखोंसी |

(1). रूसा – इसमें धरती को कोड़ने और पानी को पटाने के लिए मना की जाती है | जो व्यक्ति इस आदेश का पालन नहीं करते हैं उनसे जुर्माना लिया जाता है |

(2). सरना पूजा – यह रूसा के अगले दिन होती है जिसमें गांव के लोग सरना वृक्ष की पूजा करते हैं |

(3). फुलखोंसी – इस दिन घर के दरवाजे पर फूल को खोस दी जाती है |

सरहुल के शुरुआत की संभावना :-

एक समय सखुआ का बीज आदिवासियों का मुख्य आहार था | जिस स्त्रोत से भोजन मिलता है उसकी पूजा की जाती है | इस प्रकार यह संभावना व्यक्त की जा रही है कि सरहुल के पर्व की शुरुआत हुई |

सरहुल आर पर्यावरण :-

प्रकृति में एक संतुलन बना हुआ है | आज इंसान के द्वारा प्रकृति में हस्तक्षेप किया जा रहा और वनों की कटाई की जा रही है | जिस के कारण एक असंतुलन की स्थिति उत्पन्न हो रही है |

आज परमाणु संकट से भी बड़ा संकट पर्यावरण का संकट है | सरहुल एक मर्यादा का भी त्यौहार है | हमलोगों के पूर्वज दूर दृष्टि वाले थे | उन्हें मालूम था कि जंगल को काटने के साथ-साथ उसे लगाना भी बहुत जरूरी है |
इस प्रकृति में सारे जीव एक समान है और सब का अपना महत्व है | कोई भी जीव ना किसी से बड़ा है और ना किसी से छोटा है | आज लोगों को पर्यावरण के प्रति जागरूक करने की जरूरत है |

खोरठा साहित्य के नाटकों का सारांश

May 16, 2023 by Editorial Team

नाटक – अजगर

लेखक – विश्वनाथ दसौंधी

प्रकाशक – बालीडीह खोरठा कमिटी

नाटक का प्रकार – बहुअंकीय

प्रथम संस्करण – 2004

लेखक का जन्म – 1943

लेखक की मृत्यु – 2009

पात्र

*****************

अघनू लाला – गांव का महाजन

फूलवा – एक लड़की

मंगरा – अघनू लाला का बेटा

बिजली – बितना की पत्नी

सारदा प्रसाद – अघनू लाला का मुंशी

बितना – जोकर

जालिम सिंह – चरक पहरी थाना का थानेदार

सुगिया – गोबरा की पत्नी

बाबा भगत – गांव का पुजारी

तेतरा मांझी – गरीब आदिवासी

गोबरा – गांव का गरीब किसान

मथुरा – गांव का गरीब किसान

***********************************************************************
स्थान – गांव का चौराहा

समय – सुबह

बितना जोकर के जैसे कपड़े पहनकर लोगों के बीच में आया | और उसने लोगों से बोला कि आप लोग मेरी बात को सुनिये | इसके बाद बितना और बिजली के बीच में वार्तालाप होने लगती है | और अंत में उसने अज़गर नाटक के सुनने के बारे में कहा |

पहला अंक

पहला दृश्य

गांव का एक गरीब किसान गोबरा अघनू लाला के पास आता है | दोनों के बीच में बातचीत होती है | कुछ देर के बाद लाला ने पूछा कि मेरा कुछ पैसा तुम्हारे पास बकाया है | गोबरा ने कहा कि आपका सिर्फ ₹50 बाकी है | अघनू ने अपने मुंशी सारदा प्रसाद को बुलाया उसने देख कर बोला कि इसका ₹500 बाकी है | जब गोबरा ने देने में असमर्थता जाहिर की तब सारदा प्रसाद ने उसे एक सादा कागज दिया और उस पर अंगूठा लगाने को बोला | गोबरा ने वहां पर अंगूठा को लगा दिया | अघनू ने गोबरा के सारे जमीन और जायदाद को उस कागज पर लिख देने का आदेश मुंशी को दिया |

दूसरा दृश्य

इस दृश्य में मथुरा और बाबा के बीच में बात हो रही है | मथुरा ने बोला टूंगरी बाबा की पूजा होकर रहेगी मैं इंतजाम करता हूं | और इसके बाद मथुरा वहां से चला गया |

तीसरा दृश्य

स्थान – गोबरा की झोपड़ी

गोबरा अपने घर में प्रवेश करता है | और सुगिया से खाने के लिए मांगता है जिस पर सुगिया कहती है कि खाने के लिए कुछ नहीं है | सुगिया गोबरा की पत्नी है | इस प्रकार दोनों के बीच में बातचीत होती है और फिर रात हो जाती है |

चौथा दृश्य

स्थान – चरक पहरी थाना

इस दृश्य में थानेदार जालिम सिंह और सेवक राम के बीच में वार्ता हो रही है | इसी बीच में सारदा प्रसाद प्रवेश करते हैं | उसने कहा कि अघनू लाला ने गोबरा को पैसे दिए थे और वो आज इस बात से इंकार कर रहा है | इसलिए अब आप इस पर गौर करिए | इतना कहकर सारदा प्रसाद वहां से चले जाते हैं |

पांचवा दृश्य

इस दृश्य में मंगरा और फुलवा है | जो आपस में बात करते हैं कि विभिन्न जात होने के कारण यह समाज उन्हें साथ नहीं रहने देगा | जिस पर मंगरा का कहना था कि वह इन सब चीजों में विश्वास नहीं रखता और वह सदा उसके साथ रहेगा |

छठा दृश्य

स्थान – अघनू लाला का बैठक खाना

अघनू लाला बैठे हुए हैं उसी समय मंगरा प्रवेश करता है | दोनों के बीच में बहस होने लगती है | इस बहस का आधार जात होता है अंत में अघनू लाला मंगरा को वहां से चले जाने के लिए बोलते हैं |

दूसरा अंक

पहला दृश्य

यहां पर गोबरा और सुगिया के बीच में बातचीत हो रही है | तभी सारदा प्रसाद और थानेदार जालिम सिंह वहां पर पहुंच जाते हैं | और घर को खाली करने के लिए बोलते हैं | इसी बीच में मंगरा वहां पहुंचकर हस्तक्षेप करता है | और सारदा प्रसाद और जालिम सिंह वहां से चले जाते हैं |

दूसरा दृश्य

स्थान – टूंगरी बाबा का मंदिर

इस दृश्य में बाबा और मथुरा है | मथुरा ने बोला कि लोग टूंगरी बाबा की पूजा करने में असमर्थ हैं | तभी मंगरा भी वहां पहुंच जाता है | मंगरा और बाबा के बीच में बहस होने लगती है और अंत में मथुरा मंगरा को अपने साथ चलने के लिए बोल देता है |

तीसरा दृश्य

स्थान – गांव का मुहाना

इस दृश्य में फूलवा और तेतरा के बीच में बातचीत हो रही है फूलवा ने कहा थानेदार उसके पास आकर धमकी देते रहता है | देर तक फूलवा अपनी परेशानियां के बारे में तेतरा से वार्तालाप की |

चौथा दृश्य

थाना में थानेदार जालिम सिंह है उसी समय अघनू लाला और बाबा भगत आते हैं | जालिम सिंह के द्वारा आने का उद्देश्य पूछने पर अघनू लाला ने अपने बेटा मंगरा से जुड़े हुए समस्या को बताया |

तीसरा अंक

प्रथम दृश्य

थाना में आकर सिपाही ने बोला कि पूरे गांव में आग लगा हुआ | अभी दोनों के बीच बातचीत हो रही थी कि उसी समय मंगरा वहां आ गया | उसने बोला कि बाबा भगत ने गांव में आग लगा दिया | जालिम सिंह ने उसकी बात को नहीं माना और मंगरा को हाजत में डालने का आदेश दिया |

दूसरा दृश्य

स्थान – अघनू लाला का घर

इस दृश्य में अघनू लाला और सारदा प्रसाद के बीच में बातचीत हो रही है | सारदा ने बोला कि जिस किसी का भी जमीन आप गलत ढंग से लिए हुए हैं उसे वापस कर दीजिये | दोनों के बीच में बहस होती है |

तीसरा दृश्य

स्थान – गोबरा का घर

यहां पर सारदा प्रसाद आते हैं | और सारदा प्रसाद तथा सुगिया के बीच में बातचीत हो रही है | सुगिया ने बोला कि उसके दोनों बच्चों की मृत्यु हो गई |

चौथा दृश्य

स्थान – जंगल के बीच

यहां पर फूलवा, सुगिया और सारदा प्रसाद है | इसी समय मथुरा आते हैं | और बोलते हैं कि मंगरा को फांसी की सजा सुनाई गई है |

पांचवा दृश्य

इस दृश्य में सुगिया और फूलवा के बीच में बात हो रही है | फूलवा ने सुगिया को अन्याय का विरोध करने के लिए बोला |

छठा दृश्य

गोबरा का सर फट चुका है और उसकी बात तेतरा से हो रही है | गोबरा को थानेदार ने मारा है |

नाटक – उद्भासल कर्ण

लेखक – श्रीनिवास पानुरी

दृश्य – 11

अंक – 1

रचना काल – 1963

पहला दृश्य

कुंती भगवान सूर्य को बोल रही हैं हे भगवान आपने यह बालक को मुझे दिया इसे मैं कहां रखूं | मैं अभी कुंवारी हूं | समाज के लोग मुझे पापिन कहेंगे | तभी आकाशवाणी होती है उसे सोने के पिटारे में रखकर गंगा में बहा देने के लिए बोला जाता है | कुंती दुविधा में आ जाती है और अंत में समाज के भय को सोच कर उसे पेटी में भरकर बहा देती है |

दूसरा दृश्य

द्रोण बोलते हैं कौन नहीं चाहता है कि उसका बेटा वीर और गुणवान हो | लेकिन सिर्फ सोचने से कुछ होता नहीं इसके लिए करना पड़ता है | द्रोण अर्जुन को अपना गौरव बोलते हैं | उस के बाद कर्ण वहां प्रवेश करते हैं और बोलते हैं कि मैं आपके पास धनुर्विद्या सीखने के लिए आया हूं | उसे देख कर द्रोण को लगता है यह बालक तेज मालूम हो रहा है इसे अगर धनुर्विद्या सिखा दिया जाए तो यह बहुत बड़ा वीर बनेगा | लेकिन द्रोण उसे यह विद्या सिखाने से मना कर देते हैं | इसके बाद कर्ण सोचते हुए परशुराम के पास जाने का विचार करते हैं |

तीसरा दृश्य

इस दृश्य में द्रोण और अर्जुन शिकार खेलने के लिए गए हुए हैं | वहां पर इनकी मुलाकात एकलव्य से होती है | एकलव्य ने द्रोण को अपना गुरु मान लिया था और उनकी मूर्ति बनाकर धनुष बाण से अभ्यास करता था | यहां पर द्रोण ने एकलव्य से दाएं हाथ का अंगूठा गुरु दक्षिणा के रूप में मांग लिया | और बिना संकोच किए हुए एकलव्य ने अपना अंगूठा दे दिया |

चौथा दृश्य

इस दृश्य में कौरव और पांडव के बीच में धनुर्विद्या का खेल दिखाया जा रहा है | यहां पर कृपाचार्य कर्ण से सवाल करते हैं कि तुम कौन हो जो अर्जुन के साथ धनुर्विद्या का खेल खेलोगे | इस पर दुर्योधन ने हस्तक्षेप किया और सबके सामने कर्ण को अंग देश का राजा घोषित कर दिया | कर्ण ने दुर्योधन के सामने इसके लिए कृतज्ञता प्रकट की | अंत में कृपाचार्य ने शाम हो जाने पर सबको चलने के लिए बोला |

पांचवा दृश्य

इस दृश्य में सोनी और मीरा नाम की दो लड़कियां परशुराम के आश्रम में वार्तालाप कर रही हैं | इनके बातचीत का विषय जात-पात और ऊंच-नीच होती है | उच्च जाति के लोग निम्न जाति के लोगों से भेदभाव करते हैं |

छठा दृश्य

यहां पर गुरु परशुराम कर्ण के जांघ पर अपने सिर को रख कर सो रहे हैं | इसी दौरान एक भौंरा कर्ण के जांघ के नीचे में आकर काटने लगा | और वहां से खून बहने लगी इस खून के स्पर्श से परशुराम की नींद खुल गई | परशुराम को बहुत आश्चर्य होता है कि एक ब्राह्मण के अंदर में इतना धीरज कैसे हो सकता है | वह कर्ण से उसके जात के बारे में पूछते हैं और सच जानने के बाद उसे कहते हैं कि कर्ण तुम ब्रह्मास्त्र की विद्या को भूल जाओगे | इतना कह कर उसे आश्रम को छोड़कर जाने का आदेश दे दिया |

सातवां दृश्य

इस दृश्य में पांडव अपने वनवास को पूरा करके वापस आ चुके हैं | कृष्ण अपने मन में विचार करते हैं कि अब युद्ध की स्थिति सामने आ रही है और यह युद्ध बहुत खराब है इसमें लोग असमय मारे जाएंगे | और वह एक बार दुर्योधन को समझाने के बारे में सोचते हैं |

आठवां दृश्य

यह दुर्योधन के राजसभा का दृश्य है | यहां पर कृष्ण दुर्योधन को युद्ध को टालने के लिए समझाते हैं | परंतु दुर्योधन पांडवों को कुछ भी देने से इंकार कर देता है | कृष्ण दरबार से बाहर चले जाते हैं और उनके पीछे कर्ण आते हैं | कृष्ण कर्ण को पांडवों की तरफ आ जाने का प्रस्ताव देते हैं जिसे कर्ण अस्वीकार कर देते हैं |

नौवा दृश्य

इस दृश्य में कर्ण और कुंती के बीच में वार्तालाप हो रही है | जिसमें कुंती कर्ण को अपना पुत्र बताती हैं | और उसे बोलती है कि सारे पांडव उसके अपने भाई हैं | परंतु आखिर में कर्ण ने कुंती को कहा कि वह अर्जुन को छोड़कर बाकी सारे पुत्रों को अभयदान देता है |

दसवा दृश्य

इस दृश्य में कर्ण स्नान कर के सूरज को प्रणाम करते हैं | उसी समय इंद्र ब्राह्मण का रूप धारण करके कर्ण से उसके कवच और कुंडल को मांग लेते हैं |

ग्यारहवा दृश्य

यहां पर युद्धभूमि का दृश्य है | कर्ण के रथ का चक्का धरती में फंस गई है | और इसी समय अर्जुन ने उस पर बाण चलाकर कर्ण के प्राण ले लिए |

नाटक – चाभी-काठी

 
लेखक – श्रीनिवास पानुरी 
 
पहला दृश्य 
 
शंभू एक गरीब और शिक्षित युवक है | उसने महसूस किया कि वर्तमान समाज में अमीर और गरीब के बीच में विभाजन है | जिस व्यक्ति के पास पैसे हैं वह नकारा होते हुए भी सफल माना जाता है | समाज में बुरे लोगों का सम्मान है और अच्छे लोगों की पूछ नहीं है | सारी दिक्कतों की जड़ संपत्ति है | सारी संपत्ति 5-10 लोगों तक सीमित है | स्त्री के त्रिया चरित्र को समझना मुश्किल है और पुरुष के भाग्य में परिवर्तन कब हो जाएगी यह देवता के द्वारा भी कहना मुश्किल है |
 
दूसरा दृश्य 
 
शंभू की मां सोहागी बोलती है  तुम जब 10 वर्ष के थे तभी तुम्हारे पिताजी की मृत्यु हो गई | जमीन को बेचकर तुम्हे खिलाया, पिलाया और पढ़ाया | फिर शंभू ने बोला कि मैं मनुष्य बन गया | मैंने कभी भी तुम्हारा अपमान नहीं किया|  तुम्हें कभी दुख नहीं पहुंचाया | मैंने समाज में कभी भी किसी को दुख नहीं दिया और ना ही किसी को कोई अनुचित बात बोला | यदि तुम सोचती हो कि जिस व्यक्ति के पास पैसा है वही सिर्फ आदमी है तो यह तुम्हारी गलत सोच है | इंसान होने के लिए हृदय होना चाहिए | उसकी मां बोलती है बेटा तुम हर तरह से गुणवान हो | परंतु तुम्हारे पास सिर्फ पैसे की कमी है | यहां इतना बड़ा कोलफील्ड है जहां लाखों लोग काम करते है और तुम्हारे लिए कोई काम नहीं है | अंत में मां उसे साहस रखकर प्रयास करने बोलती है |
 
तीसरा दृश्य 
 
यहां पर बाबा और नाती के बीच में बात हो रही है | बाबा ने बोला मैं बहुत अनुभवी हूं मैंने दुनिया देखा है | मैं अनुभव से प्राप्त ज्ञान दे सकता हूं जो किताबों में नहीं मिलेगा | नाती ने पूछा यहां पर कालूराम साधारण आदमी बन कर आया था जो आज इतना बड़ा आदमी कैसे बन गया | कालूराम यहां पर भूखा-प्यासा आया था जिसे महतो ने अपने घर में नौकर के रूप में रख लिया | वो सूद पर लोगों को पैसा देने लगा | और 5 साल के अंदर में वह दुकानदार बन गया |
 
चौथा दृश्य 
 
शंभू धनबाद पहुंच चुका है | और स्टेशन पर ही रुकने का निर्णय लिया | उसे भूख लगी हुई थी | पूरा दिन उसने पानी को पी कर गुजार दिया | उसने अपने कलम को निकाला और सोचा क्या मुझे आज अपने इस प्रिय कलम को बेचना पड़ेगा |
 
पांचवा दृश्य 
 
शंभू एक दुकानदार के पास गया | वहीं पर खड़े एक व्यक्ति रतिराम ने उस से आने का उद्देश्य पूछा | जब रतिराम को मालूम चला कि शंभू बी.ए पास है तब उसे ₹200 देकर स्कूल में काम करने के लिए बोला |
 
छठा दृश्य 
 
गांव का कालूराम महाजन संतू को बोलता है मंगला को बुलाकर लाने के लिए | संतू कालूराम का नौकर है | वह उसके आदेश का पालन करने के लिए निकल पड़ा | श्रीपति ने अपने भतीजे के शादी के लिए कालूराम से पैसे की मांग की | श्रीपति को पैसे मिल जाते हैं और वो वहां से निकल जाता है |
 
सातवां दृश्य 
 
कालूराम जनता के बीच में आता है और जनता को बोलता है कि मैं मुखिया के लिए खड़ा हो रहा हूं मुझे आप लोग विजय दिला दीजिएगा |
 
आठवां दृश्य 
 
शंभू ने रतिराम को कहा कि वह वापस गांव जाना चाहता है और वहां के लोगों की सेवा करना चाहता है | इस बात का रतिराम ने विरोध किया और उसे वहीं रुकने का निवेदन किया |
 
नौवा दृश्य 
 
मोती और चुटरी माय के बीच में बातचीत हो रही है | यहां पर सामान्य चीजों को लेकर बातें होती है |
 
दसवां दृश्य 
 
इस दृश्य में सोहागी और शंभू है | शंभू ने सोहागी को बोला कि मैं गरीब लोगों के रोटी, कपड़ा और मकान के लिए काम करूंगा |
 
ग्यारहवा दृश्य 
 
शंभू ने गांव वालों के भलाई के लिए बहुत सारे काम किए  | उस ने मृत्युभोज का विरोध किया | और अपने बाप और दादा का नाम रौशन किया | 
 
बारहवा दृश्य 
 
समरी बोलती है कि मैं गरीब विधवा हूं | मैंने अपना खेत 7 वर्ष के लिए बंधक के तौर पर दिया था और अब 10 वर्ष हो चुके हैं लेकिन लेने वाले ने कब्ज़ा नहीं छोड़ा है | उस का कहना है कि मैंने बेच दिया है | शंभू ने कालूराम से बात करने का आश्वासन दिया |
 
तेरहवा दृश्य 
 
कालूराम ने मंगला को बोला कि तुम्हारा मूल ₹500 हो चुका है | कल मेरे आदमी जाएंगे और तुम्हारे गाय को लेकर आ जाएंगे | मंगला ने ऐसा ना करने की प्रार्थना की |
 
चौदहवा दृश्य 
 
इस दृश्य में कालूराम, समरी और शंभू है | समरी ने कालूराम से अपनी जमीन वापस करने की मांग की | इस पर कालूराम ने इस बात को सिरे से नकार दिया | अभी शंभू प्रवेश करता है | उसने समरी के समर्थन में बोला और कहा कि आपको जमीन छोड़नी होगी |
 
पन्द्रहवा दृश्य 
 
यहां पर धनीराम और कालूराम के बीच में बात हो रही है | धनीराम कालूराम से मुलाकात करते हैं |
 
सोलहवा दृश्य 
 
इस दृश्य में मोती और चुटरी माई के बीच में वार्तालाप हो रही है | इस में वह चुटरी माई को आधुनिक शब्द का प्रयोग करने के लिए बोलते हैं | इनके बातचीत के दौरान ही दमयंती की प्रवेश होती है |
 
सत्रहवाँ दृश्य 
 
शंभू ने एक सभा में भाषण दिया और बताया कि झारखंड एक अमीर राज्य है परंतु यहां के मूल लोग गरीब है | आज लोग स्वार्थी हो चुके हैं | हम लोगों के साथ बहुत तरह की दिक्कतें हैं और इस कारण रोने से कुछ नहीं होने वाला है | भारत के मानचित्र पर एक अलग राज्य झारखंड को बनाना होगा | यहां पर अगर दूसरे क्षेत्र के लोग आकर रहना चाहते हैं तो उन्हें भाई बनकर रहना होगा | उन्हें मालिक नहीं बनना होगा |
 
अठारहवा दृश्य 
 
दृश्य में महाजन कालूराम और संतू के बीच में बातचीत हो रही है | शंभू ने कालूराम को प्रणाम किया | और बोला गांव में एक स्कूल को बनवाना है जिसके लिए आपको पैसा देना होगा | और उस से ₹500 की मांग की |
 
उन्नीसवा दृश्य 
 
इस दृश्य में एक दलाल औरत जिसका नाम करमी है वह कालूराम के लिए एक लड़की को पटाने के बारे में जानकारी देती है | कुछ समय के बाद कालूराम शंभू को बुलाता है और बोला कि अगर जनता के हित में कुछ किया जाए तो वही सही है | यहां पर कालूराम का हृदय परिवर्तन हो जाता है |
 
बीसवाँ दृश्य 
 
इस दृश्य में शंभू, कालूराम और गांव के कुछ लोग हैं | यहां पर कालूराम अपनी सारी संपत्ति गांव के लोगों को देकर काशी जाने की बात कही | इसी दौरान उनका बेटा रोहण आ जाता है | कालूराम के प्रस्ताव को शंभू ने अस्वीकार कर दिया और उन से निवेदन किया कि वह अपनी संपत्ति को अपने पास ही रखें और गांव के लोगों के उत्थान में लगाएं |
 

नाटक का नाम – डाह

लेखक – सुकुमार

पात्र

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शेखर का बड़ा भाई – विवेक

विवेक का छोटा भाई – शेखर

वकील I – बक्शी

वकील II – गुप्ता

रेवती इंजीनियरिंग वर्कर्स के मालिक – रेवती प्रसाद

विराट की पत्नी – भावना

विवेक की पत्नी – रचना

रेवती इंजीनियरिंग वर्कर्स के मैनेजर – ध्रुव सिंह

रेवती इंजीनियरिंग वर्कर्स के कर्मचारी – विराट

रेवती इंजीनियरिंग वर्कर्स के सुपरवाइजर – जग्गा

एक गांव में दो भाई रहते थे जिनका नाम शेखर और विवेक था | विवेक की पत्नी का नाम रचना था और वह एक गृहणी थी | विवेक रेवती इंजीनियरिंग वर्कर्स नामक कंपनी में फोरमैन के पद पर कार्य करता था और उसका छोटा भाई शेखर एक किसान था जो खेतों में काम करता था | विवेक जिस कंपनी में काम करता था वहीं पर एक कर्मचारी था जिसका नाम था विराट | विराट एक दुष्ट और ईर्ष्या करने वाला व्यक्ति था जिसकी विवेक से नहीं बनती थी | वह विवेक को तबाह करने के फिराक में लगा रहता था | विराट की पत्नी का नाम भावना था जो सिर्फ अपने घर का काम करती थी |

विवेक के छोटे भाई शेखर को दुनिया की उतनी समझ नहीं थी जिसका लाभ उठाकर विराट ने उसे अपने भाई के प्रति जमीन जायदाद और हिस्से को लेकर उसे भड़का दिया और उसके दिल में अपने भाई के प्रति नफरत के बीज बो दिए | एक दिन नफरत की आग में जलता हुआ शेखर अपने बड़े भाई विवेक के पास बंदूक लेकर पहुंचा और जमीन जायदाद के कागज पर अपने आधे हिस्से की मांग की | इसी दौरान विराट भी वहीं मौजूद था और उसने अपने पिस्तौल से विवेक पर गोली चला दी और इसके फलस्वरूप विवेक की मृत्यु हो गई तथा इल्जाम शेखर के सर पर आ गई |

कोर्ट में मामले की सुनवाई के दौरान विराट की पत्नी भावना पिस्तौल को सबूत के तौर पर पेश करती है जिसके बाद शेखर को रिहा कर विराट को सजा दी जाती है | नाटक के अंत में विवेक की पत्नी रचना अपने देवर शेखर को एक कागज सौंपती है जिसमें विवेक अपने हिस्से की सारी जमीन शेखर के नाम कर दिए होता है |

खोरठा साहित्य के यात्रा वृतांतो का सारांश

May 16, 2023 by Editorial Team

यात्रा वृतांत – अंडमान

लेखक – पंचम महतो

लेखक ब्लैक डायमंड एक्सप्रेस से हावड़ा पहुंचते हैं | वहां से दमदम पहुंचे और फिर सहारा इंडिया के हवाई जहाज से पोर्ट ब्लेयर पहुंच जाते हैं | लेखक 2 जनवरी को बीर सावरकर हवाई अड्डे पर पहुंचते हैं | लेखक अपनी पत्नी सरस्वती और बेटे राजन के साथ होटल ब्लेयर के कमरे संख्या 209 में रुकते हैं | अंडमान निकोबार को कालापानी के नाम से भी जाना जाता है | यहां पर स्थित सेलुलर जेल का निर्माण कार्य 1896 से 1906 तक चली थी | यहां पर आज भी आदिमानव पाए जाते हैं | अपनी यात्रा को शुरू करने के बाद लेखक सबसे पहले वाटर स्पोर्ट्स पहुंचते हैं | पानी में पाए जाने वाला एक जीव कोरल सिर्फ दो जगहो पर पाए जाते हैं एक अंडमान और दूसरा ऑस्ट्रेलिया में |

सेल्यूलर जेल में 7 पंक्तियां और कुल 3 तल्ले है | इसमें कुल कोठरी की संख्या 698 है | सेलुलर जेल के बाहर में बीर सावरकर की पार्क बनी हुई है | यहां पर 6 स्वतंत्रता सेनानियों की मूर्ति लगी हुई है | जेल के गेट के पास में एक पीपल की पेड़ है | बीर सावरकर को 50 वर्षों की सजा सुनाई गई थी और उन्हें वर्ष 1911 में इस जेल में भेजा गया था | बैरी इस जेल के जेलर का नाम था जो वहां पर बीमार पड़ गया और कोलकाता पहुंचने के दौरान उसकी मृत्यु हो गई | वर्ष 1943-45 तक अंडमान निकोबार द्वीप जापानी लोगों के कब्जे में था |

अंडमान निकोबार में कुल 572 टापू है | मात्र 26 द्वीप अंडमान और 12 निकोबार में है | यहां के 38 द्वीप पर मनुष्य निवास करते हैं | वर्ष 1991 की जनगणना के अनुसार यहां के संपूर्ण जनसंख्या में 23% आबादी बंगाली, 19% तमिल और हिंदी भाषी लोगों की है | अंडमान द्वीप की कुल लंबाई 647 किलोमीटर और 52 किलोमीटर चौड़ाई है | यहां की कुल जनसंख्या 356 – 265 है |

यात्रा वृतांत – उज्जयिनी

लेखक – पंचम महतो

लेखक अपनी यात्रा की शुरुआत बोकारो धनबाद से करते हैं और काशी तथा प्रयागराज पहुंच जाते हैं | फिर यहां से विभिन्न जगहों से होते हुए भोपाल पहुंचते हैं और आगे उज्जैन चले जाते हैं | मध्य प्रदेश राज्य में स्थित उज्जैन एक सांस्कृतिक, आध्यात्मिक और ऐतिहासिक शहर है |

हर 12 वर्ष के अंतराल पर उज्जैन में कुंभ के मेले का आयोजन किया जाता है | राजा बिक्रमादित्य ने बिक्रम संवत की शुरुआत उज्जैन से की थी | 4 स्थानों पर कुंभ के मेले का आयोजन किया जाता है जो निम्नलिखित है प्रयाग, उज्जैन, नासिक और हरिद्वार | उज्जैन नामक शहर क्षिप्रा नदी के तट पर स्थित है इसी जगह पर महाकालेश्वर – शिव की मंदिर भी है | कालिदास, बराहमिहिर, आर्यभट्ट सभी लोगों का संबंध उज्जैन से है |

यात्रा वृतांत – काठमांडुक डहरें

लेखक – पंचम महतो


इस यात्रा वृतांत के लेखक रक्सौल से होते हुए नेपाल देश के अंदर में प्रवेश करते हैं | और वहां के शहर वीरगंज में पहुंच जाते हैं | यहां पहुंच कर ये लोग रात में रुकते हैं | फिर वीरगंज से काठमांडू की यात्रा शुरू होती है जो काफी मुश्किल से भरी होती है | और ये लोग किसी तरह से तमाम तरह की परेशानियों को उठाकर रात में 8:00 बजे इस शहर में पहुंच जाते हैं |

ये लोग पशुपतिनाथ मंदिर के पास में ही स्थित एक शिव शक्ति नामक लॉज में डेरा लेते हैं और अगले दिन बागमति नदी के किनारे में स्थित पशुपतिनाथ मंदिर के दर्शन करते हैं | इसी स्थान पर प्रसिद्ध श्मशान घाट है जहां राज परिवार, ऊँचे वर्ग के लोग और सामान्य लोगों के शव जलाने के लिए व्यवस्था की गई है |

इसके बाद लेखक दूसरे स्थान जैसे कि त्रिभुवन हवाई अड्डा, सुपर मार्केट, रानी बांध इत्यादि का भी भ्रमण करते हैं और अंत में यात्रा को समाप्त करते हुए जनकपुर लौट जाते हैं |

यात्रा वृतांत – कोनार्क जातरा

लेखक – पंचम महतो

भारत एक विभिन्नताओ से भरा हुआ देश है जिसमें अलग रूप, रंग, धर्म और संप्रदाय के लोग रहते हैं | जिनके विचार, खानपान सारी चीजें एक दूसरे से अलग है | लेकिन जो चीज सबको एक दूसरे से जोड़ती है वह है भारत माता की संतान होना |

लेखक अपने दक्षिण भारत की यात्रा 12 जनवरी को शुरू करते हैं और 14 जनवरी को उड़ीसा के चंद्रभागा नामक स्थान पर पहुंच जाते हैं | इस स्थान पर मेले का आयोजन रात में होता है और सुबह के समय सारे लोग प्रस्थान कर जाते हैं | दिन के 10:00 बजे लेखक कोणार्क मंदिर पहुंच जाते हैं | इस मंदिर का निर्माण 12 वीं सदी में राजा नरसिंह देव के द्वारा किया गया था | इस मंदिर के निर्माण में 40 करोड़ रुपए खर्च हुए थे और 12 वर्षों तक 1200 मजदूरों ने काम किया था |

प्रारंभ में मंदिर की कुल ऊंचाई 200 फीट थी जो बाद में मात्र 128 फीट रह गई | मंदिर में इंसान के जीवन की अवस्थाओं पर आधारित विभिन्न प्रकार के चित्र बने हुए थे | मंदिर के कलश को स्थापित करने में बहुत परेशानी हो रही थी इस बात की जानकारी राजा को होने पर उसने 1 दिन के समय में इसे लगाने को बोला अन्यथा सब को मौत की सजा मिलती | अंत में प्रधान कारीगर के बेटे ने कलश को स्थापित कर दिया और समुन्द्र में डूब कर अपनी जान दे दी |

यात्रा वृतांत – तीरूपति

लेखक – पंचम महतो

लेखक अपने मित्र की आंख की चिकित्सा को लेकर चेन्नई गए हुए थे वहीं से उन्हें तिरुपति जाने का अवसर मिला | इस मंदिर में दर्शन करने के लिए लाखों लोग आते हैं और 2-3 दिन रुक कर इसका दर्शन करते हैं | तिरुपति मंदिर आंध्र प्रदेश राज्य में स्थित है जिसकी दूरी चेन्नई से 175 किलोमीटर है |

यहां पर दर्शन करने के लिए तीन प्रकार की व्यवस्था की गई है पहली व्यवस्था बिना शुल्क के साधारण व्यक्ति के लिए है | दूसरी और तीसरी क्रमश: शुल्क के साथ और वी.आई.पी के लिए है | यहां पर दर्शन करने वाले लोगों के लिए कुल 30 – 35 रेस्टरूम बने हुए हैं | इस मंदिर की संपूर्ण व्यवस्था सरकार के द्वारा की जाती है | यह भारत का सबसे धनी मंदिर है |

यात्रा वृतांत – दामुदर पारसनाथ – बँउडी डहर – जातरा

लेखक – बंशीलाल बंशी

लेखक ने अपनी यात्रा 14-15 जनवरी 1989 को शुरू की थी | यह यात्रा दामोदर से पारसनाथ तक की थी | इस यात्रा की योजना बोकारो खोरठा कमिटी ने बनाई थी | इस में शामिल लोगों के नाम – शिवनाथ प्रमाणिक, शांति भारत, दिनेश दिनमणि, सचिन कुमार महतो, पानु महतो, करमचंद नायक, प्रहलाद चंद्र दास, मोहनलाल गोराँई, उमाकांत रजक, रथेन्द्र नाथ साहू, उमेश कुमार, अंबुज कुमार है |

इस यात्रा का उद्देश्य भाषा और संस्कृति के प्रति लोगों को जगाना था | जब यात्रा जारी थी उसी के दौरान रथेन्द्रनाथ साहू और उमाकांत रजक के पैरों में छाले पड़ गए थे | पारसनाथ पहाड़ी पर चढ़ने के लिए तीन दलों को बनाया गया था | ये तीनों दलों के अगुआ अलग-अलग लोग थे पहले दल के अगुवा उमेश कुमार, दूसरे के अगुआ शांति भारत और बंशीलाल बंशी और तीसरे के अगुआ शिवनाथ प्रमाणिक थे | इस तीनों दल के सदस्य क्रमश: 12:30, 01:00 और 01:30 पे पारसनाथ की चोटी पर पहुंचते हैं और शाम के 6:30 बजे पहाड़ी की तली पर पहुंच जाते हैं |

यात्रा वृतांत – दारजिलिंग आर गंगटोकेक जातरा

लेखक – चतुर्भुज साहु

दार्जिलिंग और गंगटोक की यात्रा दो बार हुई एक बार 1983 और दूसरी बार 1984 में | पहली बार घाटशिला कॉलेज से 30 विद्यार्थियों के साथ जाना हुआ | जाने वाले दिन 9 छात्र कम हो गए | इनकी यात्रा हावड़ा – बम्बई गाड़ी से शुरू होती है | इस तरह ये लोग हावड़ा पहुंच जाते हैं | यहां से ये लोग कामरूप एक्सप्रेस को पकड़कर न्यू जलपाईगुड़ी पहुंचते हैं | आगे की यात्रा सिलिगुड़ी से शुरू होती है | और कुरसियांग पहाड़ी स्टेशन पर पहुंच जाते हैं | यह दार्जिलिंग जिले में स्थित है |

कुरसियांग 5000 फीट की ऊंचाई पर स्थित है जिसकी दूरी दार्जिलिंग से 22 किलोमीटर है | धुम स्टेशन दुनिया का सबसे ऊंचा स्टेशन है जिसकी ऊंचाई 8000 फीट है | धुम और दार्जिलिंग के बीच की दूरी 8 किलोमीटर है | दार्जिलिंग में रुकने के बाद आगे की यात्रा गंगटोक के लिए शुरू होती है | दार्जिलिंग से सुबह 7:00 बजे निकले और शाम में 4:00 बजे गंगटोक पहुंचे | यात्रा की समाप्ति पर ये लोग वापस घर लौट जाते हैं |

यात्रा वृतांत – धरतीक सरग शांतिकुंज

लेखक – पंचम महतो

स्वर्ग से अभिप्राय एक ऐसे स्थान से है जहां पर देवी और देवता निवास करते हो जहां पर किसी प्रकार की कोई समस्या ना हो लोग सुख और चैन से रहते हो पृथ्वी पर एक ऐसा ही स्थान हरिद्वार है | लेखक अपनी यात्रा को धनबाद से शुरू करते हैं और हरिद्वार पहुंचते हैं | हरिद्वार हिमालय के आंगन में स्थित भगवान शिव की ससुराल है | यहीं पर कुंभ की मेला लगती है और रोज शाम में गंगा की आरती भी की जाती है |

हरिद्वार के उत्तर में हिमालय और पश्चिम में शिवालिक पर्वत स्थित है | ब्रह्कुंड के ऊपर में मनसा मंदिर है तथा ऋषिकेश से आती हुई गंगा सात धाराओं में बँट जाती है जिसे सप्तसरोवर कहते हैं | लेखक आश्रम में पहुंच जाते हैं और उन्हें यह देखकर बहुत आश्चर्य होता है कि यह आश्रम कितना बड़ा है | इन्हें रहने के लिए कोठरी दे दी जाती है | इसी जगह पर प्रवचन और यज्ञ करने की व्यवस्था रहती है |

इस आश्रम के अंदर में हर तरह की व्यवस्था है जैसे पोस्ट ऑफिस, बैंक, टिकट घर, कैंटीन सब कुछ बनी हुई है | यहां पर तारामंडल भी है जिसमें हिमालय की प्रतिरूप बनी हुई है | शिविर भी अलग-अलग प्रकार के हैं | 5 दिन, 9 दिन और 1 महीने का शिविर | आश्रम में लेखक अपने जीवन के 9 दिन वहां पर विभिन्न क्रियाकलापों को पूरा करते हुए गुजार देते हैं और उन्हें ऐसा प्रतीत होता है मानो स्वर्ग यही पर हो |

खोरठा साहित्य के कहानियों का सारांश

May 16, 2023 by Editorial Team

कहानी – अजवाहर भउजीक बेंड़ाइल चेंगा

लेखक – बिनोद कुमार

पात्र

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टुकना – भाभी का बेटा

यह कहानी अज्ञानता और शिक्षा के महत्व पर आधारित है | शिक्षा के बिना इंसान का विकास नहीं हो सकता है | शिक्षा ही सफलता की कुंजी और आज के समय में सबसे बड़ा हथियार है | इस कहानी के माध्यम से लेखक ने शिक्षा को बहुत ही महत्वपूर्ण बताया है | इस कहानी में एक भाभी है जिनके पति शहर में पेशकार का काम करते हैं उनकी शिक्षा मैट्रिक तक है | भाभी के कुल 10 बच्चे हैं जिसमें से 8 लड़के और 2 लड़कियां हैं |

ये सारे बच्चे दिनभर इधर से उधर करते रहते हैं लेकिन स्कूल नहीं जाते हैं | भाभी दिनभर फालतू के काम में लगी रहती है और अपने बच्चों पर बिल्कुल भी ध्यान नहीं देती है | एक दिन भाभी के देवर ने उनके छोटे बेटे टुकना को गर्मी के दिनों में आम के बगीचे में आम को तोड़ते हुए देखा | इस घटना को देखकर उन्होंने अपनी भाभी को अच्छे से समझाया | अंत में भाभी को अपनी गलती का एहसास होता है |

कहानी – उबार 

लेखक – बिनोद कुमार 

पात्र 

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झबरू – बिहारी का पिता 

बीरू – साहूकार का बेटा 

बिहारी – झबरू का पुत्र 

पूरे गांव में झबरू एक गरीब किसान है | वो और उसकी पत्नी अपने बच्चे बिहारी को पढ़ा लिखा कर एक इंसान बनाना चाहते हैं | झबरू का छोटा परिवार था जिसमें कुल 5 लोग थे | परवतिया और सुमियाँ दो बेटियां थी | बिहारी के दोस्त दिनेश, प्रेम और बिरजू कॉलेज जाते थे | एक दिन झबरू पश्चिम की तरफ अपने जानवरों को लेकर गया | उसी समय गणेश बाबू आ गए और उसे बोले कि अपने जानवरों को संभाल कर लाओ | कल तुम्हारा बैल मेरे गेहूं को खा गया |  इस बात से झबरू ने इंकार कर दिया | 

गणेश बाबू और झबरू के बीच हुई बात की जानकारी बीरु और महेश बाबू को हो जाती है | इसके बाद बीरु और महेश झबरू के जानवरों को खोलकर गणेश बाबू के तरफ भेज देते हैं | झबरू के जानवरों खेत को खा चुके थे | गणेश बाबू ने झबरू को गाली दिया और इसके साथ ही उस पर पंचायत में केस कर दिया | झबरू पर गुनाह साबित हो गया | और उसने ₹200 का जुर्माना दिया | साथ ही ₹300 से बिहारी का कॉलेज में नाम लिखवा दिया | कॉलेज के 3 वर्षो के बाद बिहारी के पिता की मृत्यु हो जाती है | उसकी मां ने बिहारी को बी.ए करवाने के लिए अपनी हसुली को बेच दिया | बाद में बिहारी पुलिस इंस्पेक्टर बन गया | यह एक सुखांत वाली कहानी है |

कहानी – ओद दीदा

लेखक – बिनोद कुमार

पात्र

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रेसमी – चानोवाली की बेटी

चानोवाली – रेसमी की मां

हेमिया – रेसमी की दोस्त

सुगिया – रेसमी की दोस्त

गांव के सारे लोग रेसमी की मां को चानोवाली के नाम से पुकारा करते थे | चूकी वह चानो गांव की निवासी थी जिस के कारण सारे लोग उसे इसी नाम से जानते थे | हेमिया और सुगिया रेसमी की दो दोस्ती थी | चानोवाली मन से साफ-सुथरी महिला थी | चानोवाली ने अपने जीवन में कभी भी कोई ऐसा काम नहीं किया था जिसके लिए उसे दोष दिया जा सके | महतो के घर से उनको कपड़े और भोजन मिल जाया करते थे | उनकी बेटी रेसमी और बेटा कोलहा था | साथ ही एक और बेटी जीरवा थी |

चानोवाली महतो परिवार की एक अंग बन चुकी थी | जब कभी भी शहर से महतो परिवार के बच्चे वापस लौटते हैं अपने से बड़े सारे लोगों के पैरों को छूते थे लेकिन उसके पैरों को कोई नहीं छूता था | एक बार इस कहानी के लेखक शहर से घर पहुंचे हुए थे | उन्होंने चानोवाली के पैरों को नहीं छुआ | लेखक को एहसास हुआ कि उनसे गलती हो गई है | और अगली बार अवसर मिलने पर वह जरूर उनके पैरों को छूएगे | चानोवाली की मृत्यु हो गई | और लेखक के उनके पैर छूने की इच्छा पूरी नहीं हो पाई | निर्मल महतो को चानोवाली माँ ने अपना दूध पिलाया था | यह एक दुखांत कहानी है |

कहानी – गुरुजीक चेठा

लेखक – चितरंजन महतो

पात्र

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रामनारायण – गुरुजी

इस कहानी में एक गुरुजी हैं जो देश और दुनिया में होने वाले तमाम प्रकार की लड़ाई झगड़े को सोच कर चिंतित हो जाते हैं | इतनी गहन चिंता में जाने के कारण उन्हें अपने भोजन करने का भी ख्याल नहीं रहता है | दुनिया में हर रोज हर समय घटना होती है जो अपने प्रवृत्ति में बुरी भी हो सकती है इसी बात की चिंता गुरुजी को नहीं छोड़ती है | वो समाज में फैले हुए जातिवाद और सामंतवाद के विरोधी हैं | गरीबों पर होने वाले अत्याचार से वह चिंतित है | दुनिया में बहुत सारे देश है जो एक दूसरे से लड़ रहे हैं इस बात से भी गुरुजी का मन दुखी है |

देश के कुछ राज्यों में आतंकवाद आज भी गंभीर समस्या है | भारत के पूर्वोत्तर में स्थित राज्य क्षेत्रवाद की भावना से ग्रसित है | गुरुजी इन समस्याओं से लड़ने के लिए कलम का सहारा लेते हैं | और इन समस्याओं से जूझने के लिए लिखने लगते हैं उनके लेखन से प्रभावित होकर कुछ उग्रवादी आत्मसमर्पण करने को तैयार हो जाते हैं | परंतु सरकार की नीतियां बाधा बन जा रही थी | इस कारण से वह मंत्री, नेता और विधायक से मिलना शुरू कर देते हैं | इस के दौरान ही वह बीमार पड़ जाते हैं | परंतु उनका प्रयास रुकता नहीं है | अपने स्तर से वह जो कर सकते हैं उसको करने के लिए प्रयासरत रहते हैं |

कहानी – घुवा – धँधा

लेखक – बिनोद कुमार

पात्र

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नारायण – चिकित्सक

किसुनवाँ – चिकित्सक का सहायक

एक गांव में एक चिकित्सक रहते हैं जिनका नाम नारायण है | नारायण बेहद भले और गरीबों के प्रति दया का भाव रखने वाले चिकित्सक हैं उनका मूल उद्देश्य गरीबों की दिलो जान से सेवा करना और सहानुभूति रखना है | नारायण के व्यवहार के विपरीत उनका कंपाउंडर बेहद दुष्ट प्रवृत्ति का इंसान है | इसी क्रम में एक दिन एक भिखारी उनके क्लीनिक में भीख मांगने के लिए आता है जिसे उनका कंपाउंडर डांट कर भगा देता है |

जब इस बात की जानकारी चिकित्सक नारायण को होती है तो वह कंपाउंडर के इस बुरे बर्ताव के प्रति नाराजगी को जाहिर करते हैं | नारायण इस बात को रात में भी सोचते रहते हैं और उन्हें नींद नहीं आती सुबह होने पर उनकी मुलाकात उसी भिखारी से होती है जिसे कंपाउंडर ने भगा दिया था |

कहानी – चोर-डकइत-लुटेरा

लेखक – चितरंजन महतो

पात्र

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हरखू – चोर

जलालुद्दीन – डकैत

इस कहानी में हरखू एक छोटा मोटा चोर है | उसने सरकारी बिजली के तारों की चोरी की थी जिसके लिए उसे 6 साल जेल की सजा मिली थी | हरखू के बाप और दादा भी फिजूलखर्ची करके अपने सारे पैसे को बर्बाद कर दिए थे | अत: हरखू भी गरीब था | जेल में जाने के बाद हरखू को वहां पर अलग-अलग तरह के लोगों से मिलना होता है जो गुंडे, डकैत और चोर थे | इनमें से जलालुद्दीन डकैत के रहन-सहन को देखकर हरखू बहुत प्रभावित होता है | जलालुद्दीन डकैत गरीबों की मदद करता था और उसका बहुत ही अच्छा मान सम्मान था |

जेल के भीतर में ही उसने 5 बैंक लूटने वालों को देखा जो बहुत ही कम उम्र के थे और बहुत ही बड़े परिवार के लड़के थे | इनका जीवन भी बहुत ही अच्छा था और इनकी जमानत भी जल्द ही हो गई थी | ये लड़के नेता और अधिकारियों के बच्चे थे | सारी व्यवस्था और चीजों को देखकर हरखू को बहुत ही पश्चाताप होता है और वह आगे से अपने जीवन में मेहनत करके जीवन यापन करने का निर्णय लेता है |

कहानी – छाँहईर

लेखक – चितरंजन महतो

इस कहानी में दो मजदूरों के बारे में बताया गया है जिनके नाम रोहण और मोहन है | दोनों की आर्थिक स्थिति अलग है | रोहण अपने मजदूरी वाले कार्य के अलावा गांव के जमींदार सूर्यनारायण चौधरी की सेवा भी किया करता था |

जमींदार सूर्यनारायण चौधरी शराब का सेवन करते थे और उनके साथ रहकर रोहण ने इस आदत को अपना लिया | इसके विपरीत में दूसरे मजदूर मोहन गांव के गुरुजी देवनारायण के संपर्क में रहते थे जिसके कारण मोहन के अंदर में अच्छे गुण आने लगे |

मोहन अपने बच्चों की शिक्षा पर भी ध्यान देता था | लेकिन रोहण अपने बच्चों की शिक्षा को लेकर सजग नहीं था | एक दिन मोहन और रोहण के बीच में बातचीत होती है इसके बाद मोहन रोहण को गुरुजी देवनारायण से मुलाकात करवाता है |

गुरुजी देवनारायण ने रोहण को उसके द्वारा अपनाए गए सारी बुरी आदतों को छोड़ने के लिए बोला | इस कहानी से मालूम चलती है कि संगति का असर इंसान के जीवन पर पड़ता है | इसलिए हमेशा संगति विचार कर के करनी चाहिए |

कहानी – जिनगीक डोंआनी

लेखक – बिनोद कुमार

पात्र

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जंगली – एक युवक

यह कहानी बेरोजगारी के कारण होने वाली दुर्दशा पर आधारित है | किसी भी व्यक्ति के जीवन में रोजगार का ना होने का समय बहुत बुरा होता है | उसे परिवार और समाज दोनों जगहों से अपमान और तिरस्कार का सामना करना पड़ता है | एक युवक का नाम जंगली है उसके पिता इस दुनिया में नहीं है उसकी मां ने उसे पढ़ाया लिखाया और इस लाइक किया कि वह बी.ए तक पढ़ सके | उसके घर में मां के अलावा दो भाई और भाभियाँ हैं | बड़े भाई की नौकरी कोयलरी में है | और मंझला भाई प्राइवेट सवारी गाड़ी का दलाल है |

जंगली की उम्र 30 वर्ष हो चुकी है | उसने अभी तक विवाह भी नहीं किया है | अपने दोस्त की शादी में जाने पर भी वहां उसे तिरस्कार का सामना करना पड़ता है | कहानी के अंत में जंगली की मां मृत्यु के कगार पर है और उसे ₹100 रुपये देकर एक पान की दुकान खोलने का सलाह देती है और मर जाती है |

कहानी – दू पइला जोंढ़रा

लेखक – बिनोद कुमार

पात्र

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विनय – एक चिकित्सक

किसना – बीमार बच्चा

कन्हैया बाबू – गांव का समृद्ध व्यक्ति

एक गांव में बांस का काम करने वाले एक व्यक्ति है | उनकी पत्नी और एक बच्चा जिसका नाम किसना है वो सारे मुश्किल से अपना जीवन निर्वाह करते हुए रहते हैं | इनका का कार्य बांस से जुड़ी हुई वस्तु जैसे सूप, दउरी इत्यादि का निर्माण करना है | एक दिन गांव के समृद्ध व्यक्ति कन्हैया बाबू किसना के पिता को सूप और दउरा को बनाने का काम देते हैं जिसे किसना के माता और पिता तल्लीनता से पूरा कर देते हैं इसके एवज में उन्हें 6 रुपया मिलता है |

यह सब कार्य के दौरान ही किसना बीमार रहता है जिसका इलाज उसकी मां अपने स्तर से करती है परंतु वो स्वस्थ नहीं हो पाता | अंत में उसकी मां किसना को एक चिकित्सक जिनका नाम विनय है उसके पास लेकर जाती है | विनय किसना का अच्छे से इलाज करते हैं और अपनी फी मात्र ₹2 रुपया लेते हैं | किसना के मां और बाप को इस बात पर बहुत आश्चर्य होता है | विनय कहते हैं कि सेवा करना उनका लक्ष्य है | यह एक यथार्थवादी कहानी है जिसमें सामाजिक विषमता को दर्शाया गया है |

कहानी – देवता के खाय गेलइ डाकिन

लेखक – चितरंजन महतो

पात्र

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निर्मलदास – शोभा का पति

शोभारानी – निर्मल दास की पत्नी

हबीब – निर्मल का चेला

यह कहानी बेमेल विवाह पर आधारित है | इस कहानी के मुख्य पात्र निर्मल दास है जो एक कार्यालय में बड़े बाबू के पद पर कार्यरत हैं | इनकी पहली पत्नी की मृत्यु हो जाने के बहुत दिनों के बाद उन्होंने अपने से बहुत कम उम्र की लड़की से उसकी सुंदरता को देखकर विवाह किया था | निर्मल दास एक बहुत ही भले आदमी है जो अपने कार्यालय के काम के अलावा सामाजिक और सांस्कृतिक कामों में भी हिस्सा लेते हैं | उनका उद्देश्य हमेशा गरीब लोगों की मदद करना है | वह दहेज प्रथा और सामंतवाद के खिलाफ की विचारधारा को रखते हैं |

शोभारानी जो उनकी पत्नी है वह बहुत ही आजाद और आधुनिक विचारों की महिला है जो दूसरे मर्दो के साथ घूमने फिरने और सिनेमा देखने का शौक रखती है | वह कभी भी अपनी पति की बातों को नहीं सुनती थी | निर्मल दास का शोभारानी के ऊपर में कोई नियंत्रण नहीं होता है और शोभारानी से हमेशा उनकी अनबन बनी रहती है | निर्मल दास का स्वभाव कुंठाग्रस्त हो जाता है | निर्मल दास के रिटायर हो जाने के बाद उनके सारे पैसे पत्नी के द्वारा खर्च कर दिए जाते हैं |

निर्मल दास के बच्चे भी बिगड़ जाते हैं | उम्र के एक पड़ाव के बाद शोभारानी के मन में अपनी गलतियों को लेकर पश्चाताप होती है और वह निर्मल दास से दूरियों को पाटने के बारे में सोचती है परंतु यह संभव नहीं हो पाता है | निर्मल दास एक बहुत ही भले आदमी थे परंतु उनकी पत्नी ने उन्हें बर्बाद कर दिया | आज वो अपने जीवन से विरक्त हो चुके हैं जिसके लिए शोभारानी जिम्मेवार है |

कहानी – नावाँछोट जिमीदार

लेखक – चितरंजन महतो

पात्र

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जगरनाथ चौधरी – गांव का बूढ़ा व्यक्ति

बलराम सिंह – थाना का दारोगा

इस कहानी के कथावाचक जगरनाथ चौधरी हैं जो गांव के अखड़ा में बैठकर बीते हुए समय की कहानी को सुना रहे हैं | पुराने समय में राजतंत्र हुआ करता था जब राजा, मंत्री और जमींदार होते थे | आज के समय में भी व्यवस्था में बहुत ज्यादा परिवर्तन नहीं हुई है | उस समय के राजाओं के समान आज के मंत्री लोग हैं और जमींदारों की तुलना आज के समय के डी.सी और कलेक्टर से की गई है | उस समय एक बहुत ही दुष्ट प्रवृत्ति का दारोगा था जिसका नाम था बलराम सिंह वह गांव के गरीब लोगों पर अत्याचार करता था और लोगों को सताकर उनसे पैसे वसूलता था |

उसे गांव के गरीब व्यक्तियों पर भी दया नहीं आती थी | गांव में कोई व्यक्ति खुद के लिए भी शराब बनाता था तो बलराम सिंह उसके घर पहुंच कर उससे पैसे ले लेता | पूरे गांव के लोग उसके अत्याचार से त्रस्त थे | हर दुष्ट व्यक्ति के अंत के समान बलराम सिंह का भी अंत बहुत ही दुखद हुआ उसने अपने नाजायज पैसे से बड़ा सा घर बनाया और कार को खरीदी लेकिन जीवन के अंतिम दिनों में उसके बेटे और बहू की दुर्घटना में मृत्यु हो गई और उसे खुद बीमारियों ने घेर लिया जिसके फलस्वरुप उनकी मृत्यु हो गई |

कहानी – बूबा, एगो कहनी कही दे

लेखक – चितरंजन महतो

पात्र

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दीना नाथ भंडारी – जमींदार

सहजदेव चौधरी – जमींदार

फागू मांझी – जमींदार

गंगाराम – गांव का बूढ़ा

इस कहानी में एक बूढ़े व्यक्ति जिनका नाम गंगाराम है कि द्वारा गांव के बच्चों को खलिहान में रात के समय में कहानी सुनाई जा रही है | इस कहानी में गंगाराम बच्चों को अंग्रेजों के समय की कहानी बता रहे हैं जब भारत अंग्रेजों का गुलाम था और बहुत सारे राजा और रजवाड़ों का शासन हुआ करता था | जिस समय भारत में अंग्रेजों का शासन था उस समय बहुत सारे राजा अंग्रेजों को कर दिया करते थे | ये कर राजा को जमीदारों के द्वारा प्राप्त होते थे जो गांव के लोगों से वसूली जाती थी | जमीदारों का रवैया गांव के आम व्यक्ति के प्रति बहुत बेहतर नहीं था | जमींदारों के पास बहुत ही ज्यादा जमीन और जायदाद थी इस के कारण उनका रहन-सहन भी बहुत शानो शौकत वाला होता था |

कुछ प्रमुख जमींदार सहजदेव चौधरी, दीनानाथ भंडारी, फागू मांझी और तिरथ मुंडा थे | इनकी विलासिता पूर्ण जीवन जीने के कारण इनकी हालत खराब होते चली गई और ये कंगाल हो गए और रही सही कसर जमीदारी उन्मूलन ने पूरी कर दी | जमींदारों के अलावा जो सामान्य व्यक्ति थे वो भी अपने खर्च को बढ़ाते चले गए जबकि आमदनी के स्रोत वही थे साथ में वो लोग नशा भी करने लगे | इस के परिणाम स्वरूप परिवार डूबता चला गया | नशा एक बहुत ही बुरी चीज है जिस से पहले परिवार और उसके बाद में समाज का विनाश हो जाता है | अतः लोगों को जितना हो सके नशे से दूर रहना चाहिए | कभी भी खर्च उतना ना करें जितनी कि आपकी आमदनी ना हो |

कहानी – बोनेक लोर

लेखक – चितरंजन महतो

इसमें जंगल के द्वारा अपनी बात को बोली जा रही है | मनुष्य की सुविधा के लिए वन के द्वारा लकड़ी दी जाती है | बहुत सारे लोग लकड़ी की बिक्री से आमदनी करते हैं | समृद्ध परिवार के लोग जंगल की लकड़ी को कटवा कर बेच देते हैं | जंगल अपनी दुःख की बात को बोल रहा है | जंगल के आदमी लोगों का कहना है कि वो लोग भी दुःखी हैं | जंगल के दुःख को कोई नहीं देखता उसी तरह हम लोगों के दुःख को भी कोई नहीं देखता है | जंगल की रक्षा में लगे सिपाही वहां के लोगों को तंग करते हैं | इन्हें बहुत प्रकार की दिक्कतें होती है |

ये सारी बातें लोगों ने जंगल राजा को बोला | जंगल ने बोला मैं सब कुछ देखता हूं | मानव इस सृष्टि का सबसे अच्छा प्राणी है | उसने सभी जीवो को अपने नियंत्रण में रखा है | जंगल को बचाने को लेकर बहुत योजनाएं बनती है | परंतु कुछ रुपयों के खर्च को दिखाकर बाकी सारे का गबन हो जाता है | जंगल को काटकर उजाड़ कर दिया गया और जानवर खत्म हो गए | हाथी का घर भी उजाड़ दिया गया | मनुष्य को जंगल की जरूरत पड़ेगी | इस कहानी के द्वारा पर्यावरण के संकट के बारे में बताई गई है |

कहानी – भीतर बाहर

लेखक – बिनोद कुमार

पात्र

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इबादत खां – सेराज का पिता

सेराज – इबादत खां का पुत्र

रोहित – फुटबॉल का खिलाड़ी

यह कहानी सामाजिक सदभावना पर आधारित है | इस कहानी के नायक का नाम सेराज है जिसके पिता का नाम इबादत खां है | इबादत खां का एक बहुत ही भले इंसान है और उसी तरह का उनका पुत्र सेराज है | गांव में एक बार फुटबॉल मैच का आयोजन किया गया था जिसमें खेल के दौरान एक खिलाड़ी रोहित चोटिल हो जाता है | उसी समय शहर में दंगे होने की सूचना मिलती है इसके बावजूद भी सेराज चोटिल रोहित को रिक्शे पर और आगे अपने कंधे पर बिठा कर उसे अस्पताल में ले जाकर चिकित्सक से दिखाकर उसे वापस गांव लेकर आता है | इस नेक काम की पूरे गांव में चर्चा होती है | दुर्योग से सेराज की मृत्यु गांव के कुएं में डूबने से हो जाती है |

कहानी – मलकी बहु

लेखक – बिनोद कुमार

पात्र

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मलकी के पिता – दयाला बाबू

मलकी का पति – बिसुन

बिसुन की पत्नी – मलकी

यह कहानी दहेज की बुराई पर आधारित है | दयाला बाबू की एक बेटी है जिसका नाम मलकी है इसकी शादी बिसुन नाम के व्यक्ति से तय कर दी जाती है | बिसुन ने बी.ए तक की पढ़ाई की थी | विवाह तय करने के दौरान लड़की वालों ने ₹40 हजार रूपये और मोटरसाइकिल देने का वादा किया था | लेकिन किसी कारणवश लड़की के पिता मोटरसाइकिल नहीं दे पाते हैं | इसी वजह से मलकी के ऊपर ससुराल में अत्याचार किया जाता है और उसका गर्भपात हो जाता है | इसी बीच उसके पति बिसुन ने दूसरी शादी भी कर ली और मलकी को पूर्ण रूप से त्याग दिया |

कहानी – माय के लोर

लेखक – बिनोद कुमार

पात्र

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सूरजा – गरीब मजदूर

गिरजा बाबू – गांव का जमीदार

नरेना – सूरजा का बेटा

मंगरा – शहर में काम करने वाला मजदूर

एक गांव में सूरजा नामक एक मजदूर रहता था उसके परिवार में कुल 4 लोग थे उसकी मां, पत्नी और एक बच्चा | बच्चे का नाम नरेना था | सूरजा के पिता उसी गांव के जमींदार गिरजा बाबू के घर पर काम करते थे | सूरजा गिरजा बाबू के घर पर ही काम करते थे एक बार सूरजा के बच्चे नरेना की तबीयत खराब हो जाती है जिसके इलाज के लिए वह जमींदार से ₹5 रुपया की मांग करता है जिसे देने से वो इंकार कर देते हैं |

सूरजा का मन शहर में जाकर काम करने का है वह गांव में नहीं रहना चाहता इसके लिए वह अपनी मां को मनाता है मां उसे हर तरह से समझाने की कोशिश करती है परंतु सूरजा नहीं मानता और अंत में वह शहर निकल पड़ता है | यह एक यथार्थवादी कहानी है जिसमें गांव से शहर प्रस्थान करने वाले व्यक्ति की स्थिति दिखाई गई है |

कहानी – संस्कीरतिक झगड़ा

लेखक – चितरंजन महतो

इस कहानी में दो अलग संस्कृतियाँ जो कि प्राचीन और नवीन है के बीच बहस को बताई गई है | दोनों संस्कृतियाँ अपने आप को श्रेष्ठ साबित करने में लगी हुई है | जबकि सच्चाई यह है कि दोनों अपने स्थान पर बेहतर है | पुरातन संस्कृति का विकास वन या जंगल में हुआ है दूसरी और नवीन संस्कृति का अभ्युदय नदियों के बगल में स्थित मैदानी जगह पर से हुआ है | नवीन संस्कृति को आधुनिक संस्कृति भी बोल सकते हैं | नवीन संस्कृति प्राचीन संस्कृति को विकास से अछूता मानती है | आज के समय की विज्ञान नवीन संस्कृति की उपज है |

आधुनिक संस्कृति के द्वारा अशांति फैली है और लोगों का सुख चैन छीन गया है | अभी के समय में लोगों के बीच में दया, प्रेम, त्याग और करुणा में कमी आ गई है | पुरानी संस्कृति का आधार मानवीय मूल्य था जो इस संस्कृति में देखने को नहीं मिलता | गलाकाट प्रतियोगिता और पर्यावरण का प्रदूषण इस सभ्यता की देन है | दोनों संस्कृतियों अपना-अपना गुण और दूसरों के दोष को उजागर करते रही | दोनों को अपने आप पर घमंड था | अंत में दोनों इस नतीजे पर पहुंचती हैं कि दोनों एक दूसरे की पूरक है | दोनों ही संस्कृतियों को सह अस्तित्व से ही विकास संभव है |

कहानी – समय कटवा तास खेला

लेखक – चितरंजन महतो

पात्र

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आनंद कुमार – शिक्षक और हारमोनियम वादक

बाल कृष्ण साव – शिक्षक और तबला वादक

चिन्मय मुखर्जी – शिक्षक और झाल बजाने वाले

सीताराम – ढोलकी बजाने वाला

गांव के लोग समय को काटने के लिए तास खेलते हैं इसी गांव में 3 शिक्षक भी रहते थे जो तास को खेलते थे | इनके नाम थे बाल कृष्ण साव, चिन्मय मुखर्जी, आनंद कुमार | इनमें से सबसे ज्यादा उम्र चिन्मय मुखर्जी की थी और आनंद तथा बाल कृष्ण हमउम्र के थे | ये तीनों तास को खेलते थे एक शिक्षक होकर भी यह बात गांव के लोगों को बुरी लगती थी | तास के खेल को एक बुरे रूप में देखा जाता है | अच्छे तास को जुआ के रूप में भी देखा जाता है | इसी बीच चिन्मय मुखर्जी की आंखों की रेटिना की पानी सूख जाती है |

उन्हें इलाज के लिए मद्रास ले जाया जाता है जहां पर चिकित्सक उन्हें चश्मा देते हैं और उन्हें आश्वस्त करते हैं कि अब आगे उनकी आंखें और खराब नहीं होगी | इस प्रकार ये तीनों तास खेलना बंद कर देते हैं | एक दिन ये तीनों मिलते हैं और एक सांस्कृतिक दल बनाने की योजना बनाते हैं इसके अंतर्गत आनंद हारमोनियम, बाल कृष्ण साव तबला और चिन्मय मुखर्जी झाल बनाने का निर्णय लेते हैं | दल को पूरा करने के लिए सीताराम को भी शामिल कर लिया जाता है जो ढ़ोलकी बजाते हैं |
इस तरह सांस्कृतिक दल का निर्माण कर के अब तास की जगह की जगह पर संगीत का आयोजन होने लगता है और गांव वालों की निंदा और इनके अपने पत्नियों के चिढ़ से मुक्ति मिल जाती है |

कहानी – हाम जीयब कइसे

लेखक – चितरंजन महतो

महेसर और पार्वती अपने रिश्तेदारों से मिलने के लिए बाहर निकले होते हैं | ये शाम के समय मुरपा गांव में पहुंच जाते हैं | वहां जाकर रघुनाथ का दरवाजा खटखटाते हैं | रघु की बहू बाहर निकलती है | और उन्हें घर आंगन में घुसाती है | कुछ समय के बाद महेसर की मुलाकात रघुनाथ से होती है | दोनों के बीच में बातचीत होने पर रघुनाथ ने बताया कि यहां और आसपास के लोग पुलिस से डरते हैं | यह एम.सी.सी का एरिया है | कुछ समय तक बातचीत करने के बाद दोनों उठ जाते हैं |

दोनों कोई बेदिया टोला चले जाते हैं | वहां पर चुनिया नामक महिला के घर में जाते हैं | महेसर और चुनिया के बीच में बातचीत होने लगती है | चुनिया ने बताया कि उसका पति पुलिस और एम.सी.सी के मुठभेड़ में मारा गया | वह किसी तरह अपने जीवन को जी रही है | चुनिया के पति का नाम डमरु था | चुनिया के कुल 3 बच्चे हैं 2 बेटियां और 1 बेटा |

कहानी – हुब

लेखक – बिनोद कुमार

पात्र

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दामोदर – गरीब लड़का

गुनेसर बाबू – जमींदार

गुनेसर बाबू ने दामोदर को आवाज लगाया | दामोदर ने पूछा क्या काम था | उन्होंने उसे हर जोतने के लिए बोला | परंतु दामोदर नहीं गया | दामोदर कॉलेज जाने की तैयारी कर रहा था | उसे देखकर उन्होंने बोला कि तुम हर जोतना छोड़कर कॉलेज जा रहे हो | गुनेसर बाबू ने दामोदर को बहुत बातें बोली | दामोदर घर से बाहर निकला और कसम खाया कि वह गांव नहीं आएगा | दामोदर के कुल 7 भाई थे | उसके पिता का नाम गुरदयाल था | दामोदर गुनेसर बाबू के पास ₹10 रोजाना पर बहाल हो गया था | इसी पैसे से वह खुद और मां की पेट चलाता था |

वह मैट्रिक पास कर चुका था | पढ़ाई को जारी रखते हुए उसने बी.ए ऑनर्स को प्रथम श्रेणी से पास कर लिया | साथ ही दारोगा की परीक्षा में भी उसे सफलता मिल गई | दामोदर अपने परिवार के साथ धनबाद में रहने लगता है | उसकी पोस्टिंग इसी स्थान पर थी | गुनेसर बाबू अपने परिवार के साथ तीर्थ करने के लिए गंगासागर गए हुए थे | उनकी मां बीमार हो गई | जिन्हें धनबाद के अस्पताल में भर्ती करवा दिए | तभी दामोदर गुनेसर बाबू के पास पहुंच गया | उन्होंने अपनी समस्या सामने रखी जिस पर दामोदर ने रुपया का इंतजाम कर दिया | अंत में गुनेसर बाबू महसूस करते हैं कि जात से कोई बड़ा और छोटा नहीं होता | कर्म सबसे प्रधान है |

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