संस्मरण – उजरल खोंधा
लेखक का नाम – जनार्दन गोस्वामी
प्रकाशन वर्ष – 2013
प्रकाशक – बालीडीह खोरठा कमिटी
यह संस्मरण माराफारी और उसके आसपास के बसे 85 गांवों के विस्थापन और बोकारो स्टील सिटी के स्थापना से जुड़ी हुई है | विस्थापन के दर्द को लेखक ने बहुत ही नजदीक से महसूस किया और उसे अपने शब्दों में पिरो कर लिख दिया | किसी भी स्थान से जब लोगों को विस्थापित किया जाता है तब बहुत सारी परेशानियां होती है |
यह विस्थापन की प्रक्रिया Land Acquisition Act 1894 के तहत की गई और इसकी शुरुआत वर्ष 1956 में की गई | इसमें 60 गांवों को पूर्ण रूप से और 25 गांवों को आंशिक रूप से उजाड़ दिया गया | बोकारो कारखाना की स्थापना के लिए नापी वर्ष 1960-61 में शुरू की गई उस समय भारत के प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू थे |
मुआवजे की रकम
(1). एक नंबर बहियार खेत – 3000 / प्रति एकड़
(2). दो नंबर कनारी खेत – 2000 / प्रति एकड़
(3). तीन नंबर बाइद खेत – 1500 / प्रति एकड़
(4). चार नंबर टाइंड़ खेत – 400 / प्रति एकड़
जिस समय विस्थापन की प्रक्रिया शुरू हुई थी उस समय माराफारी के अधिकांश जमीन के मालिक सरयू प्रसाद सिंह थे और उस क्षेत्र के विधायक का नाम विन्देश्वरी दुबे था |
शब्दचित्र / रेखाचित्र – रइसका
लेखक – डॉ. बी. एन. ओहदार
रइसका चारिहजुरी गांव का निवासी था | इनका जन्म भादो अष्टमी को हुआ था | जन्म के समय से ही इनके ललाट पर ढ़ोल और मांदर के चिन्ह बने हुए थे | रइसका को नृत्य करना बहुत पसंद था वह जहां भी जाता वहां समां बांध देता था | उसकी कद काठी और रुप रंग भी बहुत आकर्षित करने वाली थी | वह लोगों के बीच में बहुत ही लोकप्रिय था | रइसका को हर बार झूमर खेलने के लिए एक नदी को पार करके जाना पड़ता था |
जब नदी में पानी ज्यादा हो जाती थी तो वह नदी के दोनों तरफ स्थित पेड़ों के डालों को एक रस्सी से बांध देता था और उसी रस्सी को पकड़कर वह नदी को पार करता था | एक बार गांव के ईर्ष्यालु लोग इसी रस्सी को हल्का सा काट कर छोड़ दिए थे जब रइसका इसे पकड़कर नदी के बीच में पहुंचा तो रस्सी टूट गई और रइसका नदी में बहने लगा और अंततः डूबकर उसकी मृत्यु हो गई |