जीवनी – तिलका मांझी
लेखक – बी.एन.ओहदार
तिलका मांझी का जन्म वर्ष 1750 में राजमहल क्षेत्र के तिलकपुर गांव में हुआ था | वर्ष 1770 में संथाल परगना के क्षेत्र में अकाल पड़ी थी | क्लीवलैंड नामक अंग्रेज ने 47 गाँवो से 1300 सिपाहियों की फौज बनाई जिसमें इन लोगों को 2 से ₹10 तक का वेतन दिया जाता था | तिलका मांझी का दूसरा नाम जबरा पहाड़िया था | इन्होंने आंदोलन के प्रसार के लिए सखुआ के डाली का उपयोग किया था |
अंग्रेजो के खिलाफ तिलका मांझी ने गुरिल्ला युद्ध प्रणाली को चलाया था | और अपने प्रयास से क्लीवलैंड को तीर से जान मार दिया | इसके बाद आयरकूट को स्थिति को संभालने के लिए भेजा गया | इस समय आयरकूट से बचने के लिए तिलका मांझी ने सुल्तानगंज के पहाड़ियों में शरण लिया | अंत में तिलका मांझी को धोखे से पकड़कर भागलपुर लाया गया और सजा के तौर पर घोड़े के पीछे में बांधकर पूरे भागलपुर में घसीटा गया और फिर उन्हें फांसी पर लटका दिया गया |
जीवनी – बिनोद बिहारी महतो
लेखक – श्याम सुंदर महतो
झारखंड राज्य के लोग बिनोद बिहारी महतो को प्रेम से बाबू बुलाते हैं | ये बहुमुँखी प्रतिभा के धनी और समाज सुधारक थे | ये विधायक और सांसद दोनों पदों पर रहते हुए सेवा का कार्य किए और इन्हें फुटबॉल खेल से ज्यादा लगाव था | इन्होंने बड़ी मुश्किल से अपनी शिक्षा 8 वर्ष की उम्र से शुरू की और हर परीक्षा में अव्वल श्रेणी से सफल होते चले गए |
अपने शिक्षा को पूर्ण कर लेने के बाद इनके द्वारा शिवाजी समाज की स्थापना की गई | पढ़ो और लड़ो इनके द्वारा दिया गया सूत्र था | बिनोद बिहारी ने 22 हाई स्कूल और 5 कॉलेज को खोला था | झारखंड मुक्ति मोर्चा नामक पार्टी की स्थापना इनके द्वारा वर्ष 1972 में की गई | इस महान शख्स की मृत्यु राम मनोहर लोहिया अस्पताल में हुई थी | बिनोद बिहारी महतो का जन्म वर्ष 1921 में और मृत्यु वर्ष 1991 में हुई थी |
जीवनी – रामनारायण सिंह
लेखक – जयवीर साहू
रामनारायण सिंह को छोटानागपुर के शेर के नाम से भी जाना जाता है | इनका जन्म चतरा जिले के तेतरिया गांव में हुआ था | जन्म का वर्ष 1885 था | बाबू भोला सिंह इनके पिता का नाम था | इनका चेहरा रविंद्र नाथ टैगोर से मिलता था | इनका विवाह वर्ष 1907 में अझोला देवी के साथ हुआ था | अझोला देवी की मृत्यु वर्ष 1936 में हो गई | इन्होंने पुनः दूसरी जाति की महिला से वर्ष 1940 – 42 में दूसरा विवाह किया |
इस महान शख्स की मृत्यु 1964 में जीप दुर्घटना के कारण हो गई थी | वकालत की प्रैक्टिस वर्ष 1919 से शुरू हुई थी | इनके द्वारा किए गए सामाजिक और अच्छे कामों को देखते हुए लोग इन्हें छोटानागपुर के केशरी नाम से भी जानते थे | चतरा कॉलेज और हंटरगंज हाईस्कूल की बुनियाद भी इन्होंने ही रखी थी |
जीवनी – श्रीनिवास पानुरी
लेखक – प्रदीप कुमार
श्रीनिवास पानुरी का जन्म वर्ष 1920 में धनबाद में हुआ था | इनके पिता का नाम शालीग्राम था | रामखेलावन इनके बड़े भाई और सावित्री इनकी बहन का नाम था | श्रीनिवास पानुरी ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा धनबाद से की थी | वर्ष 1954 में बाल किरिन की रचना की गई थी और मातृभाषा की रचना वर्ष 1957 में की गई थी | कालिदास के मेघदूत की खोरठा में अनुवाद श्रीनिवास पानुरी ने की थी | इनको कविजी के नाम से भी संबोधित किया जाता था | पानुरी जी की जुगेक गीता कम्युनिस्ट घोषणापत्र की अनुवाद है | इन्होंने अपने संपूर्ण जीवन के दौरान 40 खोरठा और 40 हिंदी किताब की रचना की |