यात्रा वृतांत – अंडमान
लेखक – पंचम महतो
लेखक ब्लैक डायमंड एक्सप्रेस से हावड़ा पहुंचते हैं | वहां से दमदम पहुंचे और फिर सहारा इंडिया के हवाई जहाज से पोर्ट ब्लेयर पहुंच जाते हैं | लेखक 2 जनवरी को बीर सावरकर हवाई अड्डे पर पहुंचते हैं | लेखक अपनी पत्नी सरस्वती और बेटे राजन के साथ होटल ब्लेयर के कमरे संख्या 209 में रुकते हैं | अंडमान निकोबार को कालापानी के नाम से भी जाना जाता है | यहां पर स्थित सेलुलर जेल का निर्माण कार्य 1896 से 1906 तक चली थी | यहां पर आज भी आदिमानव पाए जाते हैं | अपनी यात्रा को शुरू करने के बाद लेखक सबसे पहले वाटर स्पोर्ट्स पहुंचते हैं | पानी में पाए जाने वाला एक जीव कोरल सिर्फ दो जगहो पर पाए जाते हैं एक अंडमान और दूसरा ऑस्ट्रेलिया में |
सेल्यूलर जेल में 7 पंक्तियां और कुल 3 तल्ले है | इसमें कुल कोठरी की संख्या 698 है | सेलुलर जेल के बाहर में बीर सावरकर की पार्क बनी हुई है | यहां पर 6 स्वतंत्रता सेनानियों की मूर्ति लगी हुई है | जेल के गेट के पास में एक पीपल की पेड़ है | बीर सावरकर को 50 वर्षों की सजा सुनाई गई थी और उन्हें वर्ष 1911 में इस जेल में भेजा गया था | बैरी इस जेल के जेलर का नाम था जो वहां पर बीमार पड़ गया और कोलकाता पहुंचने के दौरान उसकी मृत्यु हो गई | वर्ष 1943-45 तक अंडमान निकोबार द्वीप जापानी लोगों के कब्जे में था |
अंडमान निकोबार में कुल 572 टापू है | मात्र 26 द्वीप अंडमान और 12 निकोबार में है | यहां के 38 द्वीप पर मनुष्य निवास करते हैं | वर्ष 1991 की जनगणना के अनुसार यहां के संपूर्ण जनसंख्या में 23% आबादी बंगाली, 19% तमिल और हिंदी भाषी लोगों की है | अंडमान द्वीप की कुल लंबाई 647 किलोमीटर और 52 किलोमीटर चौड़ाई है | यहां की कुल जनसंख्या 356 – 265 है |
यात्रा वृतांत – उज्जयिनी
लेखक – पंचम महतो
लेखक अपनी यात्रा की शुरुआत बोकारो धनबाद से करते हैं और काशी तथा प्रयागराज पहुंच जाते हैं | फिर यहां से विभिन्न जगहों से होते हुए भोपाल पहुंचते हैं और आगे उज्जैन चले जाते हैं | मध्य प्रदेश राज्य में स्थित उज्जैन एक सांस्कृतिक, आध्यात्मिक और ऐतिहासिक शहर है |
हर 12 वर्ष के अंतराल पर उज्जैन में कुंभ के मेले का आयोजन किया जाता है | राजा बिक्रमादित्य ने बिक्रम संवत की शुरुआत उज्जैन से की थी | 4 स्थानों पर कुंभ के मेले का आयोजन किया जाता है जो निम्नलिखित है प्रयाग, उज्जैन, नासिक और हरिद्वार | उज्जैन नामक शहर क्षिप्रा नदी के तट पर स्थित है इसी जगह पर महाकालेश्वर – शिव की मंदिर भी है | कालिदास, बराहमिहिर, आर्यभट्ट सभी लोगों का संबंध उज्जैन से है |
यात्रा वृतांत – काठमांडुक डहरें
लेखक – पंचम महतो
इस यात्रा वृतांत के लेखक रक्सौल से होते हुए नेपाल देश के अंदर में प्रवेश करते हैं | और वहां के शहर वीरगंज में पहुंच जाते हैं | यहां पहुंच कर ये लोग रात में रुकते हैं | फिर वीरगंज से काठमांडू की यात्रा शुरू होती है जो काफी मुश्किल से भरी होती है | और ये लोग किसी तरह से तमाम तरह की परेशानियों को उठाकर रात में 8:00 बजे इस शहर में पहुंच जाते हैं |
ये लोग पशुपतिनाथ मंदिर के पास में ही स्थित एक शिव शक्ति नामक लॉज में डेरा लेते हैं और अगले दिन बागमति नदी के किनारे में स्थित पशुपतिनाथ मंदिर के दर्शन करते हैं | इसी स्थान पर प्रसिद्ध श्मशान घाट है जहां राज परिवार, ऊँचे वर्ग के लोग और सामान्य लोगों के शव जलाने के लिए व्यवस्था की गई है |
इसके बाद लेखक दूसरे स्थान जैसे कि त्रिभुवन हवाई अड्डा, सुपर मार्केट, रानी बांध इत्यादि का भी भ्रमण करते हैं और अंत में यात्रा को समाप्त करते हुए जनकपुर लौट जाते हैं |
यात्रा वृतांत – कोनार्क जातरा
लेखक – पंचम महतो
भारत एक विभिन्नताओ से भरा हुआ देश है जिसमें अलग रूप, रंग, धर्म और संप्रदाय के लोग रहते हैं | जिनके विचार, खानपान सारी चीजें एक दूसरे से अलग है | लेकिन जो चीज सबको एक दूसरे से जोड़ती है वह है भारत माता की संतान होना |
लेखक अपने दक्षिण भारत की यात्रा 12 जनवरी को शुरू करते हैं और 14 जनवरी को उड़ीसा के चंद्रभागा नामक स्थान पर पहुंच जाते हैं | इस स्थान पर मेले का आयोजन रात में होता है और सुबह के समय सारे लोग प्रस्थान कर जाते हैं | दिन के 10:00 बजे लेखक कोणार्क मंदिर पहुंच जाते हैं | इस मंदिर का निर्माण 12 वीं सदी में राजा नरसिंह देव के द्वारा किया गया था | इस मंदिर के निर्माण में 40 करोड़ रुपए खर्च हुए थे और 12 वर्षों तक 1200 मजदूरों ने काम किया था |
प्रारंभ में मंदिर की कुल ऊंचाई 200 फीट थी जो बाद में मात्र 128 फीट रह गई | मंदिर में इंसान के जीवन की अवस्थाओं पर आधारित विभिन्न प्रकार के चित्र बने हुए थे | मंदिर के कलश को स्थापित करने में बहुत परेशानी हो रही थी इस बात की जानकारी राजा को होने पर उसने 1 दिन के समय में इसे लगाने को बोला अन्यथा सब को मौत की सजा मिलती | अंत में प्रधान कारीगर के बेटे ने कलश को स्थापित कर दिया और समुन्द्र में डूब कर अपनी जान दे दी |
यात्रा वृतांत – तीरूपति
लेखक – पंचम महतो
लेखक अपने मित्र की आंख की चिकित्सा को लेकर चेन्नई गए हुए थे वहीं से उन्हें तिरुपति जाने का अवसर मिला | इस मंदिर में दर्शन करने के लिए लाखों लोग आते हैं और 2-3 दिन रुक कर इसका दर्शन करते हैं | तिरुपति मंदिर आंध्र प्रदेश राज्य में स्थित है जिसकी दूरी चेन्नई से 175 किलोमीटर है |
यहां पर दर्शन करने के लिए तीन प्रकार की व्यवस्था की गई है पहली व्यवस्था बिना शुल्क के साधारण व्यक्ति के लिए है | दूसरी और तीसरी क्रमश: शुल्क के साथ और वी.आई.पी के लिए है | यहां पर दर्शन करने वाले लोगों के लिए कुल 30 – 35 रेस्टरूम बने हुए हैं | इस मंदिर की संपूर्ण व्यवस्था सरकार के द्वारा की जाती है | यह भारत का सबसे धनी मंदिर है |
यात्रा वृतांत – दामुदर पारसनाथ – बँउडी डहर – जातरा
लेखक – बंशीलाल बंशी
लेखक ने अपनी यात्रा 14-15 जनवरी 1989 को शुरू की थी | यह यात्रा दामोदर से पारसनाथ तक की थी | इस यात्रा की योजना बोकारो खोरठा कमिटी ने बनाई थी | इस में शामिल लोगों के नाम – शिवनाथ प्रमाणिक, शांति भारत, दिनेश दिनमणि, सचिन कुमार महतो, पानु महतो, करमचंद नायक, प्रहलाद चंद्र दास, मोहनलाल गोराँई, उमाकांत रजक, रथेन्द्र नाथ साहू, उमेश कुमार, अंबुज कुमार है |
इस यात्रा का उद्देश्य भाषा और संस्कृति के प्रति लोगों को जगाना था | जब यात्रा जारी थी उसी के दौरान रथेन्द्रनाथ साहू और उमाकांत रजक के पैरों में छाले पड़ गए थे | पारसनाथ पहाड़ी पर चढ़ने के लिए तीन दलों को बनाया गया था | ये तीनों दलों के अगुआ अलग-अलग लोग थे पहले दल के अगुवा उमेश कुमार, दूसरे के अगुआ शांति भारत और बंशीलाल बंशी और तीसरे के अगुआ शिवनाथ प्रमाणिक थे | इस तीनों दल के सदस्य क्रमश: 12:30, 01:00 और 01:30 पे पारसनाथ की चोटी पर पहुंचते हैं और शाम के 6:30 बजे पहाड़ी की तली पर पहुंच जाते हैं |
यात्रा वृतांत – दारजिलिंग आर गंगटोकेक जातरा
लेखक – चतुर्भुज साहु
दार्जिलिंग और गंगटोक की यात्रा दो बार हुई एक बार 1983 और दूसरी बार 1984 में | पहली बार घाटशिला कॉलेज से 30 विद्यार्थियों के साथ जाना हुआ | जाने वाले दिन 9 छात्र कम हो गए | इनकी यात्रा हावड़ा – बम्बई गाड़ी से शुरू होती है | इस तरह ये लोग हावड़ा पहुंच जाते हैं | यहां से ये लोग कामरूप एक्सप्रेस को पकड़कर न्यू जलपाईगुड़ी पहुंचते हैं | आगे की यात्रा सिलिगुड़ी से शुरू होती है | और कुरसियांग पहाड़ी स्टेशन पर पहुंच जाते हैं | यह दार्जिलिंग जिले में स्थित है |
कुरसियांग 5000 फीट की ऊंचाई पर स्थित है जिसकी दूरी दार्जिलिंग से 22 किलोमीटर है | धुम स्टेशन दुनिया का सबसे ऊंचा स्टेशन है जिसकी ऊंचाई 8000 फीट है | धुम और दार्जिलिंग के बीच की दूरी 8 किलोमीटर है | दार्जिलिंग में रुकने के बाद आगे की यात्रा गंगटोक के लिए शुरू होती है | दार्जिलिंग से सुबह 7:00 बजे निकले और शाम में 4:00 बजे गंगटोक पहुंचे | यात्रा की समाप्ति पर ये लोग वापस घर लौट जाते हैं |
यात्रा वृतांत – धरतीक सरग शांतिकुंज
लेखक – पंचम महतो
स्वर्ग से अभिप्राय एक ऐसे स्थान से है जहां पर देवी और देवता निवास करते हो जहां पर किसी प्रकार की कोई समस्या ना हो लोग सुख और चैन से रहते हो पृथ्वी पर एक ऐसा ही स्थान हरिद्वार है | लेखक अपनी यात्रा को धनबाद से शुरू करते हैं और हरिद्वार पहुंचते हैं | हरिद्वार हिमालय के आंगन में स्थित भगवान शिव की ससुराल है | यहीं पर कुंभ की मेला लगती है और रोज शाम में गंगा की आरती भी की जाती है |
हरिद्वार के उत्तर में हिमालय और पश्चिम में शिवालिक पर्वत स्थित है | ब्रह्कुंड के ऊपर में मनसा मंदिर है तथा ऋषिकेश से आती हुई गंगा सात धाराओं में बँट जाती है जिसे सप्तसरोवर कहते हैं | लेखक आश्रम में पहुंच जाते हैं और उन्हें यह देखकर बहुत आश्चर्य होता है कि यह आश्रम कितना बड़ा है | इन्हें रहने के लिए कोठरी दे दी जाती है | इसी जगह पर प्रवचन और यज्ञ करने की व्यवस्था रहती है |
इस आश्रम के अंदर में हर तरह की व्यवस्था है जैसे पोस्ट ऑफिस, बैंक, टिकट घर, कैंटीन सब कुछ बनी हुई है | यहां पर तारामंडल भी है जिसमें हिमालय की प्रतिरूप बनी हुई है | शिविर भी अलग-अलग प्रकार के हैं | 5 दिन, 9 दिन और 1 महीने का शिविर | आश्रम में लेखक अपने जीवन के 9 दिन वहां पर विभिन्न क्रियाकलापों को पूरा करते हुए गुजार देते हैं और उन्हें ऐसा प्रतीत होता है मानो स्वर्ग यही पर हो |